स्वच्छ राजनीति अभियान

Afeias
22 Nov 2017
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Date:22-11-17

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राजनीति में अपराधीकरण का मामला कोई नया नहीं है। चुनाव सुधार के संबंध में जितनी भी बातें उठाई जाती हैं, उनमें चयनित उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड का भी मुद्दा उठाया जाता रहा है। दस मार्च, 2014 में उच्चतम न्यायालय ने इससे संबंधित एक आदेश भी दिया था, जिसमें चुनावों के उम्मीदवारों को अपराधी ठहराए जाने के बाद अयोग्य घोषित किया जाए या केवल चार्जशीट दाखिल होने के आधार पर अपराधी माना जाए, इसको लंबी बहस के लिए टाल दिया गया था।

तत्कालीन न्यायाधीश आर.एम.लोधा ने भारत की राजनीति को स्वच्छ बनाने के लिए एक मशाल जलाई थी। अब इस मशाल का अपने हाथ में लेते हुए न्यायाधीश गोगोई एवं सिन्हा ने एक नवम्बर, 2017 को यह मुद्दा फिर से उठाया है। उन्होंने यह बताए जाने की मांग की है कि सांसदों एवं विधायकों की आपराधिक पृष्ठभूमि के 1,581 मामलों में से कितने मामले एक वर्ष में निपटाए गए एवं इनमें से कितनों को सजा हुई। केन्द्र सरकार ने इसका उत्तर देने हेतु छः सप्ताह की मांग की है।

वर्तमान स्थिति

लोकसभा के 542 सदस्यों में से 112 सदस्यों (21 प्रतिशत) ने स्वयं ही अपने विरुद्ध गंभीर आपराधिक मामलों की बात ऊजागर की है। कल्पना कीजिए कि यही वे लोग हैं, जो हमारे लिए कानून बनाते हैं। आपराधिक पृष्ठभूमि से आने वाले सांसद एवं विधायक भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा देते हैं। इस प्रकार वे नौकरशाही एवं पुलिस को भी दूषित कर देते हैं। टेंडर से लेकर भवनों की सुरक्षा या नियुक्तियों के मामले में भ्रष्टाचार का कारण राजनीति नैतिकता में पतन ही होता है।

 संवैधानिक प्रावधान

संविधान के अनुच्छेद 14ए के अनुसार राजनेताओं को विशिष्ट वर्ग में रखा जाता है, और उनका शीघ्र ट्रायल प्रजातांत्रिक आवश्यकता है। उनके लिए विशिष्ट न्यायालयों के निर्माण हेतु उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की पुनर्नियुक्ति की जा सकती है। तदर्थ नियुक्तियाँ भी की जा सकती हैं।

क्या संभव है?

राजनीतिज्ञों के आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटाने के दो तरीके हो सकते हैं। (1) एक तो इनके अभियोक्ता ऐसे चुने जाएं, जो किसी राजनैतिक दल से संबंद्ध न हों। एक अभियोजन निदेशालय की स्थापना की जाए, जिसका प्रमुख कोई सेवानिवृत्त न्यायाधीश हो। (2) ऐसा देखा गया है कि ट्रायल के दौरान राजनेता अंतरिम आदेशों का सहारा लेकर बार-बार ट्रायल में अवरोध पैदा करते हैं। ऐसी स्थिति में उच्च एवं उच्चतम न्यायालय भी असहाय हो जाते हैं। इसे रोकने की कोशिश करनी होगी। अगर मुख्य न्यायाधीश मिशन को पूरा करने की ठान लेंगे, तो वे रास्ता निकाल ही लेंगे।

इस समस्त प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए बुनियादी ढांचे और स्टाफ की जरूरत होगी। इसके लिए धन चाहिए। जो सरकार बैंक बैंलेंस शीट की सफाई क लिए 2.11 लाख करोड़ रुपए लगा सकती है, वह राजनीति की बैलेंसशीट की सफाई के लिए भी धन लगा सकती है। अगर ऐसा नहीं हो पाता, तो सरकार को एक ‘स्वच्छ राजनीति भारत बॉन्ड’ नामक कोष बना देना चाहिए। उम्मीद है कि देश के जागरूक नागरिक राजनीति की स्वच्छता के लिए इसमें खुलकर दान करेंगे।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित श्रीराम पंचू के लेख पर आधारित।