स्टार्ट अप को गति देने के लिए विज्ञान को जोड़ना जरूरी है

Afeias
27 Jun 2018
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Date:27-06-18

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पिछले तीन वर्षों से भारत में विज्ञान और तकनीक से जुड़े स्टार्टअप अभियान में गति देखने को मिल रही है। आज, भारत की कई कंपनियां कम्प्यूटर साइंस, इंजीनियरिंग, दवाओं और कृषि के क्षेत्र में अपने झंडे गाड़ रही हैं।

इसका कारण सरकार की ऐसी नीतियां हैं, जो करों में छूट देने के साथ-साथ बौद्धिक संपदा के विकास को बढ़ावा दे रही हैं। सरकार के अटल इनोवेशन मिशन ने सरकारी विज्ञान एजेंसी के द्वारा अनेक नवोदित अभियानों को आश्रय दिया है और उनमें निवेश भी किया है।

कुछ एक मोर्चों पर प्रगति देखने लायक है। जैसे – (1) उद्यमियों को योजनाओं के लिए विकल्प देना। (2) इन योजनाओं पर काम करने वाली टीमों को प्रारंभिक स्तर पर दिशानिर्देश देना, तथा (3) स्टार्टअप पारिस्थितिकी के नवजात चरण में आने वाली चुनौतियों का सामना करने में उद्यमियों की मदद करना।

इन मोर्चों के अलावा स्टार्टअप को ईंधन देने वाले वैज्ञानिक निवेशका अभाव है। किसी भी नवाचार के विकास में विज्ञान की सहभागिता अत्यंत आवश्यक है। इसके बिना हमारे स्टार्टअप, वैश्विक जगत में प्रतिस्पर्धी नहीं हो पाएंगे। वैज्ञानिक सूचनाओं के अभाव में हमारे स्टार्ट-अप एक जुगाड़ बनकर रह जाएंगे। उन्हें पनपने का ठोस आधार नहीं मिल पाएगा।

पिछले चार वर्षों में विज्ञान को मिलने वाले सहयोग में भी वृद्धि हुई है। 2018 में सकल घरेलू उत्पाद में विज्ञान के विकास के लिए 0.7 प्रतिशत रखा गया है। आर्थिक सर्वेक्षण ने बेसिक साइंस के क्षेत्र में कुछ बड़े मिशन की जरूरत बताई थी। इनमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, सुपर कंप्यूटिंग और बायोफार्मा जैसे क्षेत्रों में तो काम शुरू भी किया जा चुका है।

बेसिक साइंस से जुड़ी उद्यमिता के लिए दो बड़ी बाधाओं को दूर करना जरूरी है।

  • स्टार्टअप पारिस्थितिकीय तंत्र में विज्ञान से जुड़ने की बात की गई है। इस उद्योग में अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने की आवश्यकता है। 2017 में एप्पल, एमेजॉन, फेसबुक और माइक्रोसॉफ्ट का संचयी निवेश 60 अरब डॉलर रहा है। भारत से तुरंत ही इस स्तर के निवेश की उम्मीद नहीं की जा सकती। परन्तु हमें धीरे-धीरे ऐसा वातावरण निर्मित करना होगा, जिसमें ज्ञान और उद्योग के बीच आपसी सम्पर्क स्थापित हो सके।
  • दूसरी बाधा को हटाने के लिए हमें अकादमिक वैज्ञानिकों के वर्ग को समाज, उद्योगों और स्टार्टअप पारिस्थितिकीय तंत्र से अधिक से अधिक जोड़ना होगा। इससे वैज्ञानिकों के अंदर भी और नवोदित उद्यमियों के अंदर भी ऊर्जा का संचार होगा।

आई.आई.टी. मद्रास ने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है।

प्रारंभिक बिन्दु के रूप में सबसे पहले हमें एक ऐसा वैज्ञानिक वातावरण बनाने की जरूरत है, जिसमें विश्व स्तर की प्रतिभाएं हमारे संस्थानों और वैज्ञानिकों के साथ काम करना शुरू कर दें। इसके दूसरे दौर में सोच-समझकर चुने हुए अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ पार्टनरशिप की जाए। इससे उद्योगों में प्रगति के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी लाभ पहुँचेगा।

इस व्यवस्था से जुड़े नेताओं को नियमन प्रक्रिया से मुक्त किया जाए, परन्तु उनकी जवाबदेही तय की जाए। इन प्रयासों से वैज्ञानिक सृजनात्मकता को निखारकर आने वाले दशकों को संवारा जा सकता है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित तरूण खन्ना और के.विजय राघवन के लेख पर आधारित। 11 जून 2018