सौर-ऊर्जा संपन्न कृषि की ओर एक कदम
Date:09-02-18 To Download Click Here.
पिछले कुछ वर्षों से सौर ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देने का काम लगातार चल रहा है। इसी श्रृंखला में सौर-पम्प एक ऐसा साधन है, जो हमारे देश के वर्षा-जल की कमी से जूझ रहे 53 % क्षेत्र को सिंचित करने की क्षमता रखता है। यह अत्याधुनिक अल्प-कार्बन कृषि तकनीक को बढ़ावा देने का माध्यम है, जिससे बढ़ती बिजली सब्सिडी के बोझ को कम किया जा सकता है। इसका सबसे बड़ा उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से परेशान कृषकों को राहत देना है। इसके उपयोग के पूर्व स्थानीय स्थितियों को ध्यान में रखते हुए कृषकों से सलाह-मशविरा करना श्रेयस्कर होगा। तभी इस तकनीक के आर्थिक लाभों को प्राप्त किया जा सकेगा।
- सौर पम्प लगाने की शुरूआत छोटे कृषकों और ऐसे क्षेत्रों से की जानी चाहिए, जहाँ भू-जल की अच्छी संभावना है। उत्तर प्रदेश के एक सर्वेक्षण के अनुसार 60 % छोटे किसान, सिंचाई के लिए या तो पानी खरीदते हैं (जो कि अत्यधिक महंगा विकल्प है), या पम्प किराए पर लेते हैं।
- सौर-पम्प को माइक्रो कृषि एवं जल संचयन के लिए उपयोग में लाने की शुरूआत की जाए। इससे कृषि और आम जनता, दोनों को ही लाभ होगा।
- इस नवीन तकनीक के लाभों से लोगों को परिचित कराने हेतु देश के हर ब्लॉक में कम-से-कम पाँच पम्प लगाए जाएं। ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद् (CEEW) के अध्ययन के अनुसार ऐसा करने से किसानों के बीच सौर-पम्प की मांग बढ़ेगी।
- जिन क्षेत्रों में बिजली के पम्पों की बहुतायत है, वहाँ निजी पम्पों के बजाय फीडर सौरन्वयन पर जोर दिया जाना चाहिए। एक तुलनात्मक अध्ययन के अनुसार निजी ग्रिड से जुड़े पम्प देना सरकार के लिए बहुत खर्चीला होता है। साथ ही यह किसानों को भी आकर्षक नहीं लगता।
- जिन क्षेत्रों में पानी की ब्रिक्री का चलन है, वहाँ सामुदायिक सौर-पम्प लगाए जाएं। जल परिषद् के शोध के अनुसार इस प्रकार के सोलर-पम्प से जल खरीदने में 80 % किसान इच्छुक रहते हैं।
- फार्मर एक्सटेंशन कार्यक्रम के माध्यम से कृषकों के बीच सौर-पम्प की साझेदारी को बढ़ावा दिया जा सकता है। सौर ऊर्जा के पम्पों के द्वारा न्यूनतम कीमत पर जल निकासी एवं इस जल की साझेदारी का काम देश के कई भागों में सफलतापर्वक चल रहा है।
- सौर-पम्प खरीदने व लगाने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी के साथ इसके ब्याज पर भी सब्सिडी का प्रावधान होना चाहिए। इससे कम समय में अधिक सौर-पम्प लगाए जाने की उम्मीद की जा सकती है।
सौर-पम्पों के उपयोग को बढ़ाने में धरातल पर आने वाले संकटों का अध्ययन करके सरकार को चाहिए कि वह इस क्षेत्र में अपने सहयोगी-तंत्र को बेहतर बनाती जाए। इस विकेंद्रीकृत तकनीक का इस्तेमाल करके सरकार सौर ऊर्जा के अपने 100 गीगावाट एवं 2022 तक कृषकों की आय दुगुनी करने के लक्ष्य पर विजय प्राप्त कर सकती है।
‘द हिंदू‘ में प्रकाशित अभिषेक जैन के लेख पर आधारित।