सार्वजनिक संस्कृति के मायने

Afeias
13 Jul 2020
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Date:13-07-20

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स्टॉप हेट फॉर प्रॉफिट (लाभ के लिए घृणा फैलाना बंद करो) एक अभियान का नारा है , जिसने फेसबुक को अपनी सेंसरशिप नीति में परिवर्तन के लिए मजबूर कर दिया है। अमेरिका के मिनियापोलिस में पुलिस की बर्बरता में एक अश्वेत नागरिक की हत्या के सोशल मीडिया पर प्रसारित होने के बाद , विश्व की कई बड़ी कंपनियों और ब्रांडों पर विरोधियों के साथ खड़े होने का दबाव आ गया है।

लाभ के लिए घृणा का प्रसार बंद करने का नारा भावनात्मक है , और इसकी शक्ति को नकारा नहीं जा सकता। अत: कोका कोला , होंडा , लेवाइज़ , माइक्रोसाफ्ट जैसी नामी कंपनियों ने एक महीने के लिए फेसबुक पर विज्ञापन बंद करने का फैसला किया है।

एक तरह से देखें , तो फेसबुक ने पारंपरिक मीडिया की सत्यता और सामाजिक जिम्मेदारी के मानदंडों का पालन नहीं करने की कीमत चुकाई है।

इससे पहले म्यांमार में व्हाट्सएप पर फैले संदेशों के कारण रोहिंग्याओं की सामूहिक हत्या की गई थी। परन्तु दूसरों द्वारा प्रेषित सामग्री की जिम्मेदारी लेने से मना करते हुए व्हाट्सएप ने पल्ला झाड़ लिया था। दरअसल , फेसबुक राजनीतिक दांवपेंचों का शिकार है , जो यह चाहता है कि फेसबुक विशेषत: राजनीतिक हाथों की कठपुतली बनकर उन सामग्री को अपने मंच से हटाए , जो उनके प्रतिकूल हैं। इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा या ह्रास से उनका कोई लेना-देना नहीं है। अत: सरकारों से विनियमन की अपेक्षा की जा सकती है। इससे जिम्मेदार प्रकाशन को अलग करने वाली रेखा खींची जा सकेगी।

विश्व के कई देशों में चल रहे अभियान में नामी और बड़ी कंपनियों का शामिल होना संस्कृति की लोकप्रियता की शक्ति को दिखाता है। ऐसा माना भी जाता है कि वाणिज्य और विज्ञापन संस्कृति के आकार को गढ़ते हैं। लेकिन जब सार्वजनिक कल्पना को प्रभावित करने वाली शक्तिशाली भावनाएं विचारधारा के रूप में सामने आती है , तो उसके सामने वाणिज्य कुछ नहीं रह जाता। सार्वजनिक संस्कृति को गढ़ने की अपनी ही शक्ति होती है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में  प्रकाशित संपादकीय पर आधारित।