सरकार की कोयला नीति पर प्रश्न चिन्ह

Afeias
15 Jun 2020
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Date:15-06-20

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हाल ही में केन्द्र सरकार ने कोयले के उत्पादन को बढ़ावा देने , और निर्यात को कम करने की दृष्टि से कुछ कदम उठाने की घोषणा की है। इस हेतु सरकार ने कोयला क्षेत्र में ढील दी है और कोल इंडिया लिमिटेड के एकाधिकार को समाप्त कर दिया है। सरकार का लक्ष्य आने वाले 4 सालों में कोयले के उत्पादन को दोगुना करना है। यहां प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि बढ़ती नवीनीकृत ऊर्जा के दौर में , भारत के लिए कोयले को ऊर्जा के मुख्य स्रोत के रुप में चला पाना क्या संभव है ?

कोयले के क्षेत्र में भारत की वास्तविक स्थिति

  • तीन साल पहले तक भारत में बिजली के लिए कोयला ही मुख्य आधार था। मई 2017 से सौर ऊर्जा के मूल्य गिरकर कम हो गए। इधर कोयले पर आधारित बिजली में खनन और परिवहन की बढ़ती दर के चलते, मूल्य बढ़ते गए हैं।
  • विश्व और स्थानीय स्तर पर नवीनीकृत ऊर्जा पर लगातार शोध और अनुसंधान किए जा रहे हैं। हाल ही में सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने 400 मेगावाट नवीनीकृत ऊर्जा की एक परियोजना रिन्यू पॉवर को दी है। इसकी कीमत कोयले की तुलना में बहुत कम रहेगी।
  • नवीनीकृत ऊर्जा के भंडारण की बढ़ती सुविधा के साथ कोयला आधारित नया पॉवर प्लांट लगाने में कोई लाभ नहीं रह गया है।
  • पर्यावरण और स्वास्थ्य पर कोयले का प्रभाव नकारात्मक है। यह कार्बन डाइ आक्साइड उत्सर्जन करता है, और वायु प्रदूषण को बढ़ाता है। समस्त उद्योगों के पार्टिक्यूलेट मैटर और सल्फर डाय ऑक्साइड उत्सर्जन में से केवल कोयला ही अकेले 60% और 50% उत्तरदायी है।

इससे होने वाली मृत्यु और बीमारियों का प्रभाव सकल घरेलू उत्पाद पर पड़ता है। प्रदूषण से होने वाले नुकसान को देखते हुए तो सभी कोयला आधारित प्लांट बंद कर दिए जाने चाहिए।

  • निजी क्षेत्र ने कोयले पर आने वाली लागत और पर्यावरणीय प्रभाव को समझते हुए इस पर निवेश करना बंद कर दिया है। 2019 में लगे दो-तिहाई पॉवर प्लांट नवीनीकृत ऊर्जा पर आधारित हैं।

सरकार की मंशा

  • भारत में कोयले को आत्मनिर्भरता और ऊर्जा सुरक्षा का आधार माना जाता है।
  • मध्य और पूर्वी भारत के लगभग 25 जिलों में कोयला खदाने हैं। यहाँ की अर्थव्यवस्था कोयले से जुड़े खनन और अन्य गतिविधियों पर आश्रित है। अत: इन क्षेत्रों में विकास और रोजगार के अवसर बढ़ाना, एक कारण हो सकता है।

निष्कर्ष

  • वर्तमान में उठाए जा रहे कदम अगले 20-30 वर्षों के लिए हमें महंगे कोयले को अपनाने के लिए बाध्य कर देंगे।
  • नवीनीकृत ऊर्जा के क्षेत्र में नित नए हो रहे शोध एवं अनुसंधान के लिए हमारे विकल्प सीमित हो जाएंगे। जब पूरा विश्व , ऊर्जा के सस्ते साधनों को अपना चुका होगा , हम महंगे कोयले पर ही आश्रित रहकर अपनी अर्थव्यवस्था का नुकसान करेंगे।
  • कोयला खनन क्षेत्रों का कोई विकास नहीं हो पाया है। भविष्य में ऐसी उम्मीद भी नहीं दिखती। अधिकांश जिले प्रदूषित और निर्धन हैं। मानव विकास सूचकांक में बहुत नीचे हैं।
  • कोयला खनन में निवेश करके हम जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण को खराब स्थिति में ही पहुँचाते जाएंगे। भविष्य में ऊर्जा की लागत बढ़ाते जाएंगे।

कोयला आधारित ऊर्जा से किसी का भला नहीं होने वाला है। इस पर आश्रित जिलों में भी रोजगार के नए स्रोतों को तलाशने की आवश्यकता है। आत्मनिर्भर भारत का अर्थ सस्ते और टिकाऊ स्रोतों की ओर कदम बढ़ाना होना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित चंद्रभूषण के लेख पर आधारित।