सरकारी गोपनीयता अधिनियम

Afeias
02 Apr 2019
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Date:02-04-19

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आज के वैश्विक परिदृश्य में गोपनीयता से ज्यादा सूचना का महत्व है। 1966 में संयुक्त राष्ट्र में इसी संदर्भ में द इंटरनेशनल कन्वीनेंट ऑन सिविल एण्ड पॉलिटिकल राइट्स को अपनाया था। इसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का विशेष महत्व था, और इसका अर्थ सभी प्रकार की सूचनाओं और विचारों की प्राप्ति और देने से था।

भारत में सरकारी गोपनीयता अधिनियम, 1923 को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लागू किया था। इसे ब्रिटिश संसद ने 1920 में अपनाया था। स्वतंत्र भारत में 1967 में इस अधिनियम में संशोधन करके इसे अधिक सख्त बना दिया गया। इसके चलते आज, सूचना के उपयोग और उसे सार्वजनिक किए जाने की संवैधानिक स्वतंत्रता पर सीधा असर पड़ रहा है।

भारत में आपातकाल के बाद आने वाली जनता सरकार ने न्यायाधीश गोस्वामी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया था, जिसने 1979 की अपनी रिपोर्ट में इस अधिनियम को निरस्त करने की वकालत की थी। परन्तु 1980 में इंदिरा गाधी की वापसी के बाद न्यायाधीश गोस्वामी के स्थान पर मैथ्यू को द्वितीय प्रेस आयोग की अध्यक्षता दे दी गई। न्यायाधीश मैथ्यू ने कभी भी सरकारी गोपनीयता अधिनियम में संशोधन की सिफारिश नहीं थी। गोस्वामी आयोग की सिफारिशों को निरस्त भी कर दिया गया है।

सन् 2014 से लेकर अब तक इस अधिनियम के उल्लंघन के आरोप में लगभग 50 लोगों पर मामला दर्ज किया गया है। हाल ही में राफेल विमान सौदे के संदर्भ में कुछ गोपनीय हस्तावेज प्रकाशित किए जाने को लेकर न्यायालय में मामला चल रहा है। इसमें अटार्नी जनरल ने तीन सदस्यीय पीठ को बताया था कि सरकार चाहे तो इस प्रकाशन के विरूद्ध सरकारी गोपनीयता अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा चला सकती है।

दूसरी ओर, पीठ में सरकार को सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 का हवाला दिया है। इस अधिनियम के खंड 24 में सुरक्षा और खुफिया विभागों को भी भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित जानकारी देने के लिए बाध्य किया गया है। खंड 8(2), सरकार को ऐसी सूचना सार्वजनिक करने को बाध्य करता है, जिसमें जनता की भलाई हो।

गृह मंत्रालय ने गोपनीयता अधिनियम के प्रावधानों पर पुनरावलोकन करके रिपोर्ट 2017 में केबिनेट सचिवालय को सौंपी है। इसका उद्देश्य 2005 के सूचना के अधिकार अधिनियम से गोपनीयता अधिनियम का तादात्म्य बिठाते हुए उसे और पारदर्शी एवं प्रभावी बनाना है।

द हिन्दूमें प्रकाशित फली एस. नरीमन के लेख पर आधारित। 13, मार्च, 2019