समुद्री हितों को बहाल करना

Afeias
19 Nov 2019
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Date:19-11-19

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मामल्लापुरम में चीनी राष्ट्रपति शी झिनपिंग और भारतीय प्रधानमंत्री के बीच का अनौपचारिक शिखर सम्मेलन अभूतपूर्व सिद्ध हुआ है। इसके माध्यम से एशियाई सहस्राब्दी को रोशन करने वाले वाणिज्य और महानगरीय राजनीति के बंधन प्रदर्शित हुए हैं।

ऐसे समय में, जब एशिया का सामरिक नौपरिवहन मार्ग के साथ-साथ भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और नियंत्रण की एक प्रवृत्ति बन गया है; मामल्लपुरम, जलयात्रा के उस स्वर्ण-युग का स्मरण कराता है, जब एशिया के समुद्र, मानवजाति के लिए एक साझी विरासत हुआ करते थे। प्रत्येक संप्रभु शक्ति ने अपने निहित स्वार्थों के लिए एशिया के जल की स्वतंत्रता की रक्षा की। परन्तु कभी उस पर शासन का प्रयत्न नहीं किया। 1511 में पुर्तगालियों ने मलक्का पर कब्जा करके इस नियम की धज्जियां उड़ा दीं। राज्य नियंत्रित हिंसा के हाथों धीमी गति से नियम की मृत्यु ही हो गई। इसके शव को पश्चिमी देशों ने एशिया के समुद्र में ही दफना दिया।

समान हित

नई दिल्ली और बीजिंग, एशिया के नौ-चलन क्षेत्र में समान हितों को साझा करते हैं। दोनों ही देश इन हितों और रणनीतियों को अलग-अलग तरीके से देख सकते हैं। दोनों ही देश, एक-दूसरे की संचार लाइनों को नौ परिवहन के लिए मुक्त रख सकते हैं।

आगे का कदम क्या हो ?

  • भारत और चीन को एक-दूसरे के मूल हितों का सम्मान करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। साथ ही किसी तीसरे देश के साथ किए जा रहे नौवहन समझौतों का सम्मान करना चाहिए।
  • बुनियादी ढांचों में निवेश को किसी भी स्थिति में हथियारबंद होने से रोका जाना चाहिए।
  • दोनों ही देशों को अपने बेड़ों को अपने समकक्षों के बेड़ों से कुछ दूरी पर रखना चाहिए, जिससे कि उनकी दूसरी प्रहार निवारक क्षमता की अखंडता को नीचा न किया जा सके।
  • भारत और चीन, दोनों ही देश एशिया के समुद्री चोक बिन्दुओं पर लाभ उठाने का प्रयत्न करते हैं। अतः दोनों ही देशों को चाहिए कि वे सुमात्रा के पूर्व और पश्चिम में व्यापक सौदेबाजी के अवसरों की खोज करें।
  • दीर्घावधि में भारत, चीन और उनके एशियाई साझेदारों को नरम कानून बनाने पर विचार करना चाहिए, जो वैश्विक समुद्री कानून के संरक्षणवादी रुख और विकास की चाकबंदी को मजबूत कर सकें। ये कानून ऐसे हों, जो समुद्री अशांति और सैन्यीकरण को रोकने में मदद करें।

भारत और चीन ने अपने भूमि संबंधी विवादों से जो सबक सीखा है, उसे वे समुद्री विवादों से बचने के लिए उपयोग में ला सकते हैं।

उम्मीद की जा सकती है कि हजारों मील की इस यात्रा का शुभारंभ किसी अगले अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में एक कदम बढ़ाने के साथ ही हो सकेगा।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित सौरभ गुप्ता के लेख पर आधारित। 17 अक्टूबर, 2019

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