जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक स्वतंत्रता बहाल हो

Afeias
03 Sep 2020
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Date:03-09-20

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5 अगस्त, 2019 को केन्द्र सरकार ने धारा 370 को समाप्त करते हुए, इसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को हटा दिया था। इसके बाद राज्य को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में विभक्त कर दिया गया था। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के छ: मुख्य राजनीतिक दलों ने अपने राज्य के विशेष दर्जे को एक बार फिर से पुनर्स्थापित करने का संकल्प करते हुए एकजुटता दिखाई है। इस संदर्भ में उन्होंने गुपकर घोषणा को पुनर्जीवित करने का भी संकल्प लिया है।

गुपकर घोषणा क्या है ?

  • चार अगस्त, 2019 को एक सर्वदलीय बैठक फारूख अब्दुल्ला के गुपकर निवास पर हुई थी। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि सभी उपस्थित दल सर्वसम्मति से जम्मू-कश्मीर की पहचान, स्वयत्तता और विशेष दर्जे की रक्षा के लिए एकजुट रहेंगे।
  • यह भी कहा गया था, ”अनुच्छेद 35ए और 370 में संशोधन या इन्हें खत्म‍ करना, असंवैधानिक सीमांकन या राज्य का बंटवारा जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के लोगों के खिलाफ आक्रामकता होगी।”

केन्द्र का मानना था कि जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों की कोई खास लोकप्रियता नहीं है। उन्हें जनता से दूर रखने के लिए कई प्रमुख नेताओं को नजरबंद या हिरासत में रखा गया था। पीडीपी के कुछ दलबदलू नेताओं ने वहां चुनावों के बहिष्कार के बावजूद चुनाव लड़ा, परन्तु वैकल्पिक राजनीतिक का रास्ता नहीं खोल पाए।

निष्कर्ष – केन्द्र की कश्मीर नीति भाजपा के एकात्मक राष्ट्रवाद के ब्रांड के साथ, दुस्साहस और अज्ञानता का मिश्रण रही है। किसी भी क्षेत्र से संबंधित विशेष प्रावधानों का विरोध करने वाली भाजपा सरकार ने स्वयं, नागा विद्रोहियों से ऐसी व्यववस्था पर समझौता करने की पहल की थी।

जम्मू-कश्मीर के मुख्य राजनीतिक दलों ने राज्य को भारतीय संघ के करीब रखने का प्रयत्न किया है। भाजपा और केन्द्र, उन सभी को नरम अलगाववादियों के रूप में दिखलाती चली गई है। उन्हें उन्हीं की जनता के सामने असहाय बना दिया गया। सरकार के ये सभी कदम लोकतंत्र और संघवाद की मूल अवधारणा को कमजोर करते हैं। ये कदम केन्द्र के जम्मू-कश्मीर को भारत के एकीकृत करने के दावे को भी झुठलाते हैं। इन सभी कदमों को तुरंत सुधारने की आवश्यकता दिखाई देती है।

जम्मू-कश्मीर राज्य की स्थिति को जल्द ही बहाल किया जाना चाहिए और राजनीतिक गतिविधियों को स्व्तंत्र रूप से शुरू करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 25 अगस्त , 2020

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