श्रीलंकाई मछुआरे बनाम भारतीय मछुआरे
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जब कभी भी श्रीलंका के अधिकार वाले समुद्री जल में कोई भारतीय मछुआरा आहत होता है या मारा जाता है, तो भारतीय जनता और यहाँ तक कि राजनेता भी अपने आपसी मतभेद भुलाकर श्रीलंका के विरूद्ध खड़े हो जाते हैं। अगर श्रीलंका के दृष्टिकोण से देखें, तो वास्तविकता कुछ और ही नज़र आती है।
- श्रीलंका हर महीने के प्रारंभ में भारत को एक समेकित रिपोर्ट भेजता है, जिसमें श्रीलंका के समुद्री जल में घुसे भारतीय मछुआरों की संख्या, समय आदि होता है। यह रिपोर्ट भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल के उच्च अधिकारियों के साथ-साथ श्रीलंका में स्थित भारतीय राजदूत के पास भी भेजी जाती है।
- श्रीलंका के जल में घुसे भारतीय मछुआरों की संख्या बहुत बड़ी होती है। फरवरी माह में इनकी संख्या 853 थी। इन्हें श्रीलंका के 29 क्षेत्रों में देखा गया था। कई बार तो एक ही दिन में सौ से भी अधिक नावें श्रीलंका के जल क्षेत्र में देखी गईं।
- श्रीलंका और भारत के मध्य बने पाक जलडमरूमध्य को तीन घंटे से भी कम समय में पार किया जा सकता है। आजकल सभी मछुआरों के पास मोबाइल फोन हैं। इन फोन में जीपीएस की भी सुविधा होती है। फिर भी हमारे मछुआरे उनके जल क्षेत्र में क्यों पहुँच जाते हैं ? हाल ही के तीन महीनों में श्रीलंका ने लगभग 85 भारतीय मछुआरों और 14 नावों को पकड़ा है। मछुआरों को तो छोड़ दिया जाएगा, लेकिन नावें नहीं लौटाई जाएंगी। अगर उन्हें नावें दी गईं, तो ये मछुआरे फिर से वहीं दिखाई देंगे।
- दरअसल, जब से श्रीलंका में गृहयुद्ध की समाप्ति हुई है, तब से उनके समीकरण बदल गए हैं। वहाँ के मछुआरे अपने जल पर पूर्ण अधिकार चाहते हैं। अब समय है कि भारत अपने मछुआरों पर नियंत्रण करे। अगर भारत अपने जमीनी पड़ोसियों को रोकने के लिए दूर-दूर तक हदबंदी कर सकता है, जब वह बांग्लादेशी और पाकिस्तानी घुसपैठियों को रोकने के लिए देखते ही गोली मारने की नीति अपना सकता है, तो उसे श्रीलंका को भी इस बात का पूरा अधिकार देना होगा कि वह उसके क्षेत्र में घुसपैठ करने वाले भारतीय मछुआरों को रोक सके।
‘द हिंदू‘ में प्रकाशित वी. सुदर्शन के लेख पर आधारित।