
शहरी गरीब एवं मलिन बस्तियों की समस्या
Date:17-09-18 To Download Click Here.
क्या किया जाना चाहिए ?
- सबसे पहले तो अस्थायी गरीब बस्तियों में रहने वालों का सही आंकड़ा ज्ञात किया जाना चाहिए। इन बस्तियों की परिभाषा ही तरल है, जो बहुतों को गिनती में नहीं लेती। 2011 की जनगणना, गरीब बस्तियों में रहने वालों की संख्या 6.5 करोड़ दिखाती है। यह यू एन-हेबीटेट 2014 में दिए गए 1.04 करोड़ के आँकड़े से बहुत भिन्न है।
- गरीब बस्तियों के लिए बनाई गई नीतियाँ, भवन निर्माण, पुर्नस्थापन या इन बस्तियों के आसपास बहुमंजिली इमारतों के विकास से जुड़ी होती हैं। इन नीतियों का बस्तियों में रहने वाले लोगों के आर्थिक-सामाजिक असंतोष से कोई लेना-देना नहीं होता। बैंगलूरू में लाई गई दो योजनाओं से इस बात का खुलासा हुआ। नीदरलैण्ड, अमेरिका और एक स्थानीय एनजीओ ने इन बस्तियों का सर्वेक्षाण करने के बाद बताया कि इनमें रहने वाले 70 प्रतिशत परिवार ऋण के भार से दबे हुए हैं। ये लोग ब्याज की भारी दर पर रुपये उधार लेते हैं, और उसे चुकाते-चुकाते बिजली और पानी जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की भी पूर्ति नहीं कर पाते।
- अमेरिका के ड्यूक विश्वविद्यालय ने अपने सर्वेक्षण में बताया कि इन बस्तियों में रहने वाले दस में से सात परिवार चार पीढ़ियों से यहीं रहते चले आ रहे हैं। यहाँ से निकलकर भी वे इससे अधिक मलिन बस्ती में रहने को मजबूर हुए। शहरों के दूसरे क्षेत्रों में होने वाले विकास कार्यों की अपेक्षा इन बस्तियों के लिए बहुत कम काम किया जा रहा है।
- शिक्षा में सुधार के लगातार सरकारी प्रयासों के बावजूद शहरी गरीब बस्तियों के जीवन-स्तर में सुधार न होना दुखदायी है। इसका सीधा संबंध नए रोजगारों में आए परिवर्तन से लगाया जा सकता है। वर्तमान स्थितियों में स्नातक या तकनीकी प्रमाण पत्र प्राप्त करने वाले युवाओं को कम वेतन वाली नौकरियां ही मिल पाती हैं। अतः इन बस्तियों में रहने वाले युवाओं की आय अन्य युवाओं की तुलना में कम होती है।
गरीब और मलिन बस्तयों के लिए निचले स्तर पर सर्वेक्षण करके यथानुरूप नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है। इस प्रकार की बस्तियों में राजनीतिक संरक्षण ने पक्के घर, स्वच्छ जल, नियमित विद्युत आपूर्ति जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करा दी हैं। इसके साथ ही अगर इन बस्तियों के रहवासियों को आर्थिक अवसर और पर्याप्त रोजगार मिल सके, तो कहना ही क्या? अतः इन बस्तियों के लिए अपनाई गई आवासीय योजनाओं से बहुत थोड़ा कल्याण हो सकेगा। आमूलचूल परिवर्तन के लिए समग्र विकास की ओर ध्यान देना होगा।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित मोहित एम. राव के लेख पर आधारित।