विदेश नीति की अस्पष्टता
Date:19-12-19 To Download Click Here.
2014 से भाजपा के शासन के साथ ही भारत की विदेश नीति में हुए तार्किक और अपरिहार्य परिवर्तनों पर गौर किया जाना आवश्यक है। स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक के समय को विदेश नीति के संदर्भ में छह चरणों में बांटा जा सकता है। इन चरणों में से प्रत्येक के समय के नेताओं की नीतियों के आधार पर अपनी विशेषताएं रहीं हैं। इस बीच भारत की ओर से चलने वाली हठधर्मिता के कारण भारत एक किनारे बना रहा। उन चरणों ने 2014 से प्रारंभ हुए नए चरण का निर्माण किया, जिसमें अधिक ऊर्जावान कूटनीति की मांग थी। इस दौर की दुनिया में नाटकीय परिवर्ततन हो रहे थे, और भारत का एक आर्थिक शक्ति और प्रौद्योगिकीय शक्ति के रूप में विकास; अपेक्षाएं बढ़ा रहा था। दूसरे शब्दों मे कहें, तो मोदी सरकार की नई नीतियां, परिवर्तन की चुनौती की ही देन हैं।
इन परिवर्तनों ने गुट निरपेक्षता को काल-दोष जैसा बना दिया, और बहुराष्ट्रीय समझौतों को जरूरी बना दिया। अब भारत को अलग-अलग प्रकार के एजेंडे के साथ अलग-अलग राष्ट्रों से समझौते करने पड़े।
नई विदेश नीति हेतु
विदेश मंत्री जयशंकर ने वर्तमान विदेश नीति के लिए फिलहाल पाँच तत्वों पर जोर देने की बात कही है –
- इच्छाशक्ति को परीक्षण की कसौटी पर कसना।
- आर्थिक कारणों के चलते पर्यावरण का लाभ उठाने की आवश्यकता।
- प्रतिरक्षा की मांग पर ध्यान देना।
- कूटनीति में कुछ अधिक जोखिम उठाना।
- वैश्विक अंतर्विरोधों की पृष्ठभूमि में वैश्विक रुझान को समझना।
विदेश मंत्री के वक्तव्यों से ऐसा जान पड़ता है कि नई विदेश नीति संबंधी कुछ फैसले करने में बाहरी अवरोधों की जगह सरकार के अंदरूनी मामले रोड़ा अटका रहे हैं। अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि क्या ऐसी कोई दीवार है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी तोड़ नहीं पा रहे हैं, या वह पड़ोसी देशों के प्रति उनकी नीति या हाउडी मोदी या मामल्लपुरम से संबंधित उनकी पहल?
फिलहाल, असुरक्षित सीमाओं, एकीकृत क्षेत्रों के अभाव एवं अवसरों के अपर्याप्त उपयोग के साथ कोई राष्ट्र महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर नहीं हो सकता। भारत अकेले ही इन समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता। सीमा विवाद सुलझाने का चीन का कोई इरादा नहीं है। पाकिस्तान को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए भारत के साथ संघर्षरत रहना ही है। और क्षेत्रीय एकीकरण भारत की पकड़ में नहीं आ रहा है।
ऐसे में, उम्मीद की जा सकती है कि भारत अपनी गति से आगे बढ़ने का प्रयत्न करेगा, और अपने को आंतरिक मोर्चे पर इस प्रकार से मजबूत करेगा कि वह विदेश नीति में अपने चरण, सफलता के साथ स्थापित कर सके।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित टी.पी.श्रीनिवासन के लेख पर आधारित। 29 नवम्बर, 2019