भारत की विदेश नीति का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

Afeias
04 Nov 2016
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने दो वर्षों के कार्यकाल में 42 से अधिक देशों की यात्रा की है। हर्ष की बात यह है कि उन्होंने अपनी इन यात्राओं में भारत की आर्थिक स्थिति का लाभ उठाकर विदेशों से संबंध मजबूत किए, वहीं दूसरी ओर विदेशों से संबंध मजबूत करके भारत के लिए बहुत से आर्थिक लाभ भी लिए। इन यात्राओं में उन्होंने अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए यह सोच रखी कि 2032 तक भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को 10 खरब डॉलर तक पहुँचाने और रोजगार के 17 करोड़ 50 लाख अवसर उत्पन्न करने के लिए विदेशों से संबंधों का आधार भी बढ़ाना होगा।

प्रधानमंत्री के विदेशी सरकारों के साथ आत्मीयता भरे व्यवहार ने भारत के आत्मविश्वास को कई गुना बढ़ा दिया है। आज जहाँ पश्चिम के देश आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और पूरे विश्व में आर्थिक उन्नति अवरोह की ओर है, वहीं भारतीय प्रधानमंत्री ने लगभग पूरे विश्व को विश्वास दिला दिया है कि भारत में आर्थिक महाशक्ति बनने की पूरी क्षमता है। उन्होंने भारत की आर्थिक प्रगति में रोड़ा डालने वाले भ्रघ्टाचार, कर प्रणाली, कार्पोरेट कानून, सरकारी मंजूरी तथा नौकरशाही के अवरोध में सुधार हेतु पूर्ण आश्वासन दिया है।

साथ ही सरकार ने जिस प्रकार मेक इन इंडिया, डिजीटल इंडिया, स्मार्ट सिटी, क्लीन इंडिया, क्लीन गंगा तथा जीएसटी की शुरुआत की है, उससे भारत की छवि में सकारात्मक परिवर्तन आए हैं। साथ ही बैंकरप्सी कानून में सुधार, परियोजनाओं की तत्वरित मंजूरी एवं रुकी हुई परियोजनाओं की पुनः शुरुआत करके भारत ने एक कदम और आगे बढ़ाया है।काफी वर्षों से विश्व व्यापार संगठन और गैट जैसी संस्थाएं देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार संबंध एवं समझौतों में अहम् भूमिका निभाती रही हैं। अब स्थिति अलग है। देखने में आ रहा है कि विकासशील देशों को भी बहुपक्षीय मंच पर किसी मुद्दे पर सहमत कर पाना मुश्किल है। इसके कारण छोटे व्यापार समूह; जैसे-एसियान (ASESN), सार्क (SARC)और ब्रिक्स (BRICS) आज अधिक कारगर सिद्ध हो रहे हैं। इसको ध्यान में रखते हुए हमारे प्रधानमंत्री ने भी कुछ नई शुरुआत की है।

एक्ट ईस्ट नीति के द्वारा भूटान, बांग्लादेश, भारत और नेपाल (BBIN) को जीपीएस और कॉमन लाइसेंसिंग नीति से जोड़ दिया गया है। उत्तर-पूर्व भारत से म्यामार के लिए सड़क मार्ग बनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने बांग्लादेश के साथ चल रहे समुद्री सीमा विवाद पर बातचीत की है और भूसीमा विवाद समझौते (LBA) की पुष्टि की है।

  • अफगानिस्तान के साथ विकास परियोजनाओं को गति दी गई है।
  • ईरान के साथ चाबार बंदरगाह पर त्रिपक्षीय समझौता तो भारत-ईरान-अफगानिस्तान के संबंधों में मील का पत्थर साबित हुआ है।
  • प्रधानमंत्री की तेहरान यात्रा ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा को निस्संदेह बढ़ा दिया है।
  • भारत-जापान संबंध अपने चरम पर हैं। जापान से5 अरब करोड़ डॉलर के निवेश की उम्मीद की जा रही है।
  • जर्मन चांसलर से प्रधानमंत्री के संबंध बहुत अच्छे हैं। जर्मनी के पास उच्च श्रेणी की तकनीक के साथ अतिरिक्त पूंजी भी है। भारत को जर्मनी से दोनों ही मामले में सहयोग की आशा है।
  • फ्रांस के साथ साझेदारी में भारत ने सौर ऊर्जा संबंधी समझौता किया है। इस समझौते में 120 देश भी शामिल हैं। ये देश भारत की सौर क्षमता का यथासंभव उपयोग कर सकेंगे।

मध्य एशिया के देशों में उज्बेकिस्तान के साथ भारत के गहरे सांस्कृतिक संबंध हैं। तुर्कगेनिस्तान ऊर्जा की दृष्टि से समृद्ध है। कजाकिस्तान के पास जल ऊर्जा स्रोत हैं और तजाकिस्तान का ऐतिहासिक महत्व है।भारत की आर्थिक उन्नति के लिए अफ्रीका ने भी पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया है। 54 अफ्रीकी देशों का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद भारत की तुलना में ज्यादा है। 2015 में नई दिल्ली में हुए भारत-अफ्रीका सम्मेलन में दोनों पक्षों में कई मुद्दों पर समझौते हुए।प्रवासी भारतीयों के प्रति प्रधानमंत्री ने जिस प्रकार की आत्मीयता और अपनेपन का प्रदर्शन किया है, उसने भारत में विदेशी मुद्रा के प्रवाह को बहुत बढ़ा दिया है। विश्व बैंक के अनुसार 2015-16 में भारत को 72 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा के रूप में भेजे गए। इससे भारत विश्व में सबसे अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त करने वाला देश बन गया है।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त करने वाले देशों में भी भारत प्राथमिकता पर है। विदेशी निवेशकों ने अब तक लगभग 200 अरब डॉलर का निवेश भारत में किया है। 2014 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में व्यापार क्षेत्र का योगदान 46 फीसदी रहा है। परंतु आने वाले दशक में सरकार इसे दुगुना करना चाहती है। 2019 तक भारत को विश्व का सबसे प्रमुख ‘स्टार्ट-अप’ देश बनाने पर भी काम चल रहा है। 2022 तक सकल घरेलू उत्पाद में निर्माण उद्योग के योगदान को 16 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी करने का प्रयत्न किया जा रहा है।

इंडियन एक्सपे्रस में प्रकाशित गोपाल कृष्ण अग्रवालके लेख पर आधारित।

 

 

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