विकास की चुनौतियाँ

Afeias
13 Nov 2017
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Date:13-11-17

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2020 तक भारत की युवा जनसंख्या 64 प्रतिशत हो जाएगी। इसके चलते भारत की उत्पादकता एवं सकल घरेलू उत्पाद में निश्चित रूप से बढ़ोतरी होगी। ऐसा अनुमान है कि 2030 तक भारत विश्व में शीर्ष की तीन अर्थव्यवस्थाओं में अपना स्थान बना लेगा। इससे पहले हमारे प्रगति पथ को कई परिवर्तनकारी चुनौतियों का सामना करना है। ये चुनौतियाँ इस प्रकार की हैं –

  • हमारी आधी से अधिक जनता कृषि पर निर्भर है। वर्ष 2016-17 के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदार महज 16 प्रतिशत रह गया है।
  • निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर अभी एकल अंकों में है।
  • विश्व में होते मूल राजनीतिक परिवर्तनों के कारण निर्यात में कमी आ सकती है।
  • प्रतिवर्ष एक करोड़ लोग रोजगार पाने की कतार में खड़े हो रहे हैं।

भारत के समक्ष इस बात की चुनौती है कि वह कैसे इन समस्याओं को फायदे में बदलता है।

  • आर्थिक विकास के लिए भौतिक एवं डिजीटल बुनियादी ढांचे के विकास की आवश्यकता है। इन्हें एकीकृत किया जाना भी जरूरी है। इसके लिए बाजारों के बीच आपसी संपर्क के साथ-साथ मांग उत्पन्न करने और खपत को संतुलित करने की आवश्यकता है।

भौतिक बुनियादी ढांचों में विकास स्पष्ट दिखाई दे रहा है। हाल ही में वित्त मंत्री ने सड़कों के निर्माण पर बड़ी रकम लगाए जाने की घोषणा की है। इसके लिए दिल्ली-मुबंई औद्योगिक गलियारों, पूर्वी तटीय आर्थिक गलियारा, भारतमाल, स्मार्ट सिटी मिशन आदि के माध्यम से काम किया जाएगा।

इसी प्रकार से डिजीटल बुनियादी ढांचे का विकास भी अहम् है। भारत में एक अरब से अधिक मोबाईल उपभोक्ता हैं। आधार एवं यूपीआई जैसे तकनीकी माध्यमों से जन-धन योजना आदि के द्वारा ग्रामीणों को भी औपचारिक अर्थव्यवस्था से जोड़ा जा रहा है।

  • रोजगार के अवसर बढ़ाने में निर्माण कार्यों की बड़ी भूमिका है। इसे हम कृषि कार्य से स्थानांतरित लोगों को रोजगार दे सकेंगे।
  • तकनीक भी रोजगार के क्षेत्र में मददगार है। दूरसंचार के विस्तार एवं भारत नेट के प्रयास से विभिन्न सेवाओं के लिए तकनीशियनों को रोजगार मिल रहा है।
  • ई-कॉमर्स एवं लॉजिस्टिक कंपनियों के छोटे शहरों में विस्तार से रोजगार के नए अवसर सामने आ रहे हैं।
  • स्वास्थ्य सेवाओं एवं शिक्षा में भी नए अवसर आ गए हैं। तकनीक के माध्यम से राज्यों एवं बड़े शहरों के विशेषज्ञों की सुविधा जिला स्तर पर प्राप्त की जा सकती है।
  • नीतियों एवं उनके नियमन, पूँजी बाजार में सुधार, कौशल विकास आदि के माध्यम से ईज़ ऑफ डूईंग बिजनेस को और सुगम बनाया जा सकता है।

रियल स्टेट रेग्यूलेटरी अथॉरिटी एक्ट के द्वारा इस क्षेत्र में जवाबदेही का माहौल बन गया है।

कौशल विकास के क्षेत्र में व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं तकनीकी मंचों तक प्रशिक्षार्थियों की पहुँच को बढ़ाकर रोजगार पाने की उम्मीदों को मजबूती दी जा सकती है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित एन. वेंकटराम के लेख पर आधारित।

 

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