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वर्तमान सुधारों की वास्तविकता
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वर्तमान केन्द्र सरकार ने सुधारों की जो झड़ी लगाई है, उनसे हमारे देश के आर्थिक परिपेक्ष्य में यकीनन बदलाव आ रहे हैं। इनमें वस्तु एवं सेवा कर, दिवालियापन कानून, बेनामी संपत्ति कानून, इंडिया स्टैक, मुद्रास्फीति को लक्ष्य करने के लिए आर.बी.आई. को संवैधानिक रूप से स्वायत्तता देना, जन-धन-आधार-मोबाइल (JAM) के उपयोग को बढ़ाना और भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए विमुद्रीकरण करना कुछ ऐसे कदम हैं, जो मील के पत्थर साबित हुए हैं। केन्द्र सरकार ने प्रशासन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए सरकारी कार्यालयों में बायोमिट्रिक मशीन लगाई है। जनता के पैसे पर मौज करने वाले बाबू और नेताओं को हटाया है। हर दूसरे माह ‘प्रगति’ समूह की बैठक शुरू की है, जिसमें राज्यों के उच्च अधिकारियों के साथ बुनियादी ढांचों की प्रगति पर चर्चा की जाती है। सरकारी सब्सिडी का लाभ सीधे जरूरतमंद को पहुँचाने का इंतजाम किया है। मनरेगा को बुनियादी सुविधाओं के विकास से जोड़ दिया है।
सरकार द्वारा प्रशासन में सुधार के लिए उठाए गए सभी कदम तो बस एक शुरूआत हैं, जो प्रशासन को और भी ज्यादा सक्षम, उत्तरदायी और पारदर्शी बनाएंगे। इससे विकास का लाभ सभी को समान रूप से मिल पाएगा।निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के कार्य निष्पादन में गुणवत्ता के बीच के अंतर को कम करना भी मोदी सरकार का लक्ष्य है। आजादी के बाद से लगभग पहली बार सार्वजनिक सेवाओं को दुरूस्त करने के लिए जागरूक और नियमित प्रयास किए जा रहे हैं।
सरकारी खर्चों में मितव्ययिता अपनाते हुए जन-धन-आधार और मोबाइल के त्रिकुट द्वारा झूठे लाभार्थियों का पत्ता साफ किया जा रहा है।भारतीय संदर्भ में देखें, तो प्रशासनिक सुधार ही संरचनात्मक सुधारों की कुंजी दिखाई पड़ते हैं। अपने गुजरात के मुख्यमंत्रित्व काल में प्रधानमंत्री ने स्वयं इस बात को समझा है कि भविष्य में उदारवाद का लाभ उठाने के लिए किसी देश का उन्नत होना एक अनिवार्य शर्त है। अभी तक भारत की छवि एक कमजोर देश की रही है, जबकि एक उन्नत देश ही वंचितों की उन मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है, जिससे अभी तक वे दूर थे।
सन् 1991 के बाद से ही मूलभूत सार्वजनिक सेवाओं को निजी क्षेत्र को सौंपने का दौर चल पड़ा था, जिसने शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन आदि की सार्वजनिक व्यवस्था को ध्वस्त कर डाला। वर्तमान सरकार इन सार्वजनिक सेवाओं को फिर से पटरी पर लाना चाहती है, जिससे भारत के हर नागरिक को पारदर्शी, उत्तरदायी और बिना भेदभाव के इनका लाभ मिल सके। ऐसा होना आसान नहीं है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री डिजीटलीकरण और केन्द्रीकरण पर इतना जोर दे रहे हैं।अगर इन सुधारों को सफलता मिल जाए, तो ये भारत के इतिहास में ऐसा मोड़ ला देंगे, जो सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ाने के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को भी बदल देगा। ऐसा होने पर आज घरेलू एवं विदेशी कार्पोरेट द्वारा उठाया जाने वाला बेजा लाभ खत्म हो जाएगा।
वर्तमान में चल रहे सुधार कोई भ्रम नहीं हैं वरन् वास्तविकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित राजीव कुमार के लेख पर आधारित।