लॉर्ड मैकॉले

Afeias
09 Nov 2017
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Date:09-11-17

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लॉर्ड थॉमस बेबिंक्टन मैकॉले एक ऐसे व्यक्त्वि थे, जिन्होंने महात्मा गांधी के 1915 में भारत आगमन से पूर्व ही भारत में उनकी भूमिका लिखनी प्रारंभ कर दी थी। सन् 1832 में हाऊस ऑफ  कॉमन्स में अपने भाषण में लॉर्ड मैकॉले ने भारत को स्वतंत्र करने की सिफारिश करते हुए कहा था-‘‘भारत के लोगों को हमारे कुःशासन के अधीन रखने से बेहतर है उन्हें स्वतंत्र कर देना।’’ उनके ऐसे ही गुणों के कारण शिक्षाविद् डी. श्याम बाबू ने उन्हें ‘महात्मा’ की तरह वर्णित किया है।

लॉर्ड मैकॉले भारतीयों में ज्ञान का प्रसार चाहते थे। उन्हें जागरुक बनाना चाहते थे। उनका मानना था कि यूरोपियन भाषा में भारतीयों को ज्ञान देकर वे भारतीयों के दृष्टिकोण को अधिक व्यापक बना सकते हैं। यही कारण है कि अधिकारियों के एक वर्ग ने अरबी एवं संस्कृत में भारतीयों की शिक्षा का विरोध करते हुए अंग्रेजी शिक्षा की वकालत की । इसका उद्देश्य भारतीयों को खासतौर से विज्ञान का ज्ञान देना था।

उन्होंने भारत में फैले जातिभेद को हर प्रकार से गलत ठहराया था। उनका मानना था कि जाति आधारित व्यवस्था के कारण भारत पहले ही बहुत से पूर्वाग्रहों के चलते हानि उठा चुका है।

भारत में शिक्षा का प्रसार करके एवं जाति भेद को दूर करने की अलख जगाकर लॉर्ड मैकॉले ने एक तरह से भारत में ब्रिटिश शासन के अंत का बीज बो दिया था।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित चंद्रभान प्रसाद के लेख पर आधारित।

 

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