युवा कार्यकर्ता बनाम बूढ़े लोग
Date:05-12-19 To Download Click Here.
मतदाताओं के आयु वर्ग के अनुसार किसी सामाजिक समूह का राजनीतिकरण करने की नीति, भारत में नई नहीं है। हमारी 65 प्रतिशत जनसंख्या, जो 29 से 35 तक की आयु में है, आज हर राजनीतिक दल की मांग-सूची में ऊपर है। इनका इस्तेमाल दलों के चुनाव-प्रचार, धरनों, रैली, नए सदस्यों की भर्ती तथा उच्च शिक्षा संस्थानों में चुनाव लड़ने के लिए किया जाता है।
यहाँ सवाल उठता है कि क्या आज के नेता और राजनीतिक दल, युवाओं के सशक्तीकरण का प्रयास कर रहे हैं? यह दोनों पक्षों की लिए जीत की तरह होती है या इस्तेमाल के बाद छोड़ दी जाने वाली प्रक्रिया है, इसे देखा जाना चाहिए।
1. राजनीति में अपने व्यापक प्रतिनिधित्व के बावजूद, देश के युवाओं को वरिष्ठ नेताओं की तुलना में अवसर नहीं मिल पाते हैं। राजनीतिक दलों में सक्रियता से काम करने के बावजूद, यह उनकी नियमित आय का साधन नहीं बन पाता है।
प्रतिवर्ष हजारों युवा अनेक राजनीतिक दलों का हिस्सा बनते हैं। परन्तु उनमें से मुट्ठी भर ही ऐसे होते हैं, जिन्हें आगे चुनावी टिकट मिल पाता है।
पंचायत चुनावों से लेकर सांसदों तक एक जिले में कुछ ही चुनावी सीटें होती है।
2.नेताओं को युवाओं के भविष्य से जुड़े मुख्य मुद्दों से कोई सरोकार नहीं होता है। जबकि यह उनका नैतिक कर्तव्य है कि वे स्थानीय स्तर पर ही शिक्षा व्यवस्था और कौशल विकास को इतना दुरुस्त करें कि रााजनीति में आकर सीट न पा सकने वाले युवा भी अपने भविष्य के स्थायित्व के लिए अच्छे विकल्प तलाश सकें।
आज देश में रोजगार का मुद्दा केवल राजनीति बनकर रह गया है, जिस पर कोई ठोस काम नहीं किया जा रहा है।
3.हैरानी की बात यह है कि विश्वविद्यालयीन राजनीति के युवा प्रतिनिधि भी युवाओं के भविष्य से जुड़े मुद्दों को नहीं उठाते हैं।
इन मुद्दों में सर्वप्रथम शिक्षा की गुणवत्ता की मांग होनी चाहिए। सार्वजनिक संस्थानों में शिक्षकों के अनेक पद खाली पड़े हैं। लेकिन इस बात को लेकर विद्यार्थियों के धरने की खबर शायद ही कभी सुनने में आई हो।
देश के युवाओं को अपने अंदर ही राजनीतिक दांवपेंचों की समझ बढ़ानी चाहिए। दूसरे, राजनीति में प्रवेश करने वाले युवाओं के प्रति उनके वरिष्ठ नेताओं का कर्त्तव्य बनता है कि वे उनकी शिक्षा और कैरियर को दांव पर लगाकर उनका शोषण न करें। तीसरे, युवा नेताओं को इस बारे में जिम्मेदारी से पेश आना चाहिए। उन्हें युवाओं के भविष्य से जुड़े शिक्षा और ठोस भविष्य जैसे मुद्दों पर नीतियां बनाने की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संजय कुमार के लेख पर आधारित। 16 अक्टूबर, 2019