माओवादियों की जड़ नगरों में है

Afeias
16 May 2018
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Date:16-05-18

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देश में नक्सलवाद की समस्या बहुत पुरानी है। दूसरे शब्दों में इसे माओवादी आतंकवाद भी कहा जाता है। आज तक यही माना जाता रहा है कि पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र व आंध्रप्रदेश में सुदूर बसे वनवासियों को प्रशासन की ओर से समुचित सामाजिक-आर्थिक सुविधा न मिलने के कारण ही नक्सलवाद पनप रहा है। यह भी एक कारण हो सकता है।

वर्तमान संदर्भों में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) एक प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन है। इसकी जड़ें दूर-दूर तक फैली हुई हैं, और इसका जाल केवल जनजातियों तक सीमित नहीं है।

  • स्टड़ी ऑफ टेरररिज़म एण्ड रेस्पांस टू टेरररिजम एवं दक्षिण एशियाई टेरररिज़म पोर्टल में सी पी आई (माओवादी) को कई वर्षों से विश्व के पाँच बड़े आतंकवादी संगठनों में रखा गया है।
  • यह संगठन प्रजातंत्र के स्थान पर बंदूक के दम पर राजनीतिक सत्ता हथियाने के लिए सरकार की कमजोरियों का फायदा उठाता रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि उनकी युद्ध पद्धति फोर्थ जेनरेशन वारफेयर (4GW) वाली है। इसमें शत्रु अदृश्य रहकर या छिपकर लड़ाई करता है। इनका उद्देश्य विनाश के द्वारा नागरिकों को आतंकित करके उन पर आधिपत्य जमाना है।
  • मओवादियों ने जनजातियों को हमेशा ही चारे की तरह इस्तेमाल किया है। मुठभेड़ों के दौरान वे इन लोगों को आगे कर देते हैं। जबकि माओवादियों के नेता स्वयं, मुठभेड़ के स्थानों से दूर रहते हैं। इतना ही नहीं, माओवादियों ने बड़ी संख्या में जनजातियों को भी मारा है।
  • माओवादियों ने अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए तीन तरह के सिद्धान्तों को अपना रखा है। (1) शहरी क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों का नेतृत्व (2) वनों में सशस्त्र सेना एवं (3) बड़े संगठनों के साथ संयुक्त मोर्चा बनाना। इनके सिद्धान्तों में से दो तो शहरी क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं।
  • यह सत्य है कि माओवादी आंदोलन की शुरुआत ही शहरों और कस्बों से हुई है। शहरी नेतृत्व और सैन्य सहायता के बिना इनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।

2004 में सीपीआई (एम एल) और माओईस्ट कम्यूनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया एक हो गए थे और उन्होंने सी पी आई (माओईस्ट) नामक एकल पार्टी का गठन किया था। इसके बाद उन्होंने पार्टी के लिए मुख्यतः पाँच सिद्धान्तों का रणनीतिक मसौदा तैयार किया था। उनके एक दस्तावेज में, शहरी क्षेत्रों में उनके कार्यों के बारे में विस्तृत वर्णन किया गया है। इसी प्रकार एक अन्य दस्तावेज : स्ट्रैटजी एण्ड टक्टिक्स् ऑफ इंडियन रिवोल्यूशन’ में उन्होंने बताया है कि किस प्रकार सैन्य बल एवं बड़े शहरी संगठनों में बनाया गया उनका संयुक्त मोर्चा ही उनकी मुख्य शक्ति है।

  • शहरी माओवादियों से केवल कानूनी रास्ते से निपटा जा सकता है। सुरक्षा एजेंसियों के पास इनके बारे में पुख्ता सबूत होते हैं। उनका इस्तेमाल वे शहरी माओवादियों के छद्म रूप को ऊजागर करने में कर सकते हैं। तत्पश्चात् उन पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। प्रो. जी.एन.साईबाबा पर इसी प्रकार कार्यवाही की गई थी।

बहुत से एन.जी.ओ. और मानवाधिकार संगठनों की आड़ में माओवादी काम कर रहे हैं। वे अनेक सामाजिक व राजनैतिक संगठनों में शामिल होकर उन्हें अपनी विचारधारा से प्रभावित करने का प्रयत्न कर रहे हैं। गुप्त संगठनों के अलावा वे अनेक ऐसे प्रजातांत्रिक संगठन चला रहे हैं, जिनकी आड़ में वे अपनी कूटनीतियों को अमल में ला सकें।

नवम्बर, 2013 में गृह मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय में माओवादियों के छद्म सामाजिक व राजनीतिक संगठनों के खतरे को भांपते हुए एक एफीडेविट डाला था।

समस्या का समाधान

  • सर्वप्रथम, समाज को यह स्वीकार करना होगा कि माओवादी समस्या का केन्द्र नगर हैं।
  • शहरी माओवादियों की व्यापक जाँच-पड़ताल की जानी चाहिए। इसके द्वारा ही उन्हें दोषारोपित करके कानूनी शिकंजे में लाया जा सकेगा।
  • समाज के वंचित और उपेक्षित वर्ग; जैसे-दलित, अल्पसंख्यक, महिलाएं, जनजाति आदि पर माओवादी समूह अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इन वर्गों के अधिकारों की रक्षा करके इन्हें बचाया जा सकता है, और माओवदियों का प्रसार रोका जा सकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित स्मिता गायकवाड़ के साक्षात्कार पर आधारित। 2 मई, 2018

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