भारत में कॉपरेटिव बैंकों के नियमन की चुनौतियां

Afeias
02 Dec 2019
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Date:02-12-19

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पिछले दिनों आर.बी.आई. ने पंजाब और महाराष्ट्र कॉपरेटिव बैंक से निकासी को प्रतिबंधित कर दिया था। इसके चलते इन बैंकों के उपभोक्ताओं के साथ-साथ अन्य बैंकों के उपभोक्ताओं के बीच भी आशंका की एक लहर-सी दौड़ गई थी।

कॉपरेटिव बैंक एक ऐसी वित्तीय संस्था है, जो इसके सदस्यों अर्थात् इसके ग्राहकों बनाम स्वामियों के सहयोग से चलती है।

राज्य सरकारों के अधीन आने से इनका नियमन तो आर.बी.आई देखता हैं, परन्तु इनकी कार्यप्रणाली 1949 के बैंकिंग रेग्यूलेशन एक्ट और 1955 के बैंकिंग कानून पर आधारित है।

अगर कॉपरेटिव बैंकों का इतिहास देखा जाए, तो 1966 से ही ये आर.बी.आई. के राडार पर है। शहरी कॉपरेटिव बैंक भले ही आर.बी.आई. के राडार पर हों, परन्तु बोर्ड का अधिग्रहण हो या निदेशकों की बर्खास्तगी का मामला हो; आर.बी.आई. का इन बैंकों पर उतना नियंत्रण नहीं है, जितना प्राइवेट बैंकों पर है।

पंजाब और महाराष्ट्र कॉपरेटिव बैंक के मामले में आर.बी.आई. के अनुसार तीन प्रकार की समस्याएं थीं। बड़े स्तर की वित्तीय अनियमितताएं, आंतरिक नियंत्रण की विफलता और जोखिम की सही तस्वीर न दिखाना। आर.बी.आई. और कॉपरेटिव सोसायटी रजिस्ट्रार के साथ-साथ राज्य सरकार के मिले-जुले नियमन से कॉपरेटिव बैंकों की कार्यप्रणाली बहुत प्रभावित होती है।

सुधारात्मक काम

पिछले चार-पाँच वर्षों में कॉपरेटिव बैंकों की सेहत सुधारने के लिए आर.बी.आई. ने कुछ प्रयास किए हैं। इन पर गौर किया जाना आवश्यक है।

  1. एक समिति बनाई गई थी, जिसने कुछ उचित और अनूकूल व्यक्तियों के प्रबंधन बोर्ड की सिफारिश की थी। इसे बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स से अलग बनाया जाना था। ऐसे प्रबंधन बोर्ड से संचालन पर पर्याप्त नियंत्रण रहने की संभावना होगी।
  1. आर.बी.आई. ने शहरी कॉपरेटिव बैंकों को छोटे वित्तीय बैंकों में परिवर्तित होने का विकल्प दिया था। 50 करोड़ रुपये या अधिक की पूंजी वाले बैंकों को यह विकल्प दिया गया था।

अब समाधान यही हो सकता है कि शहरों के बड़े कॉपरेटिव बैंक अपने लिए बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट का गठन करें या छोटे वित्तीय बैंकों में परिवर्तित हो जाएं।

  1. शहरी कॉपरेटिव बैंकों के लिए आर.बी.आई. किसी दाता संगठन की सिफारिश करता है। यह संगठन बैंकों के लिए पूंजी के स्रोत बढ़ाने का काम कर सकता है।
  1. कुछ समय पूर्व माधवपुरा मर्चेन्टाइल कॉपरेटिव बैंक में हुई धोखेबाजी की घटना के बाद से यह विचार करना आवश्यक हो गया है कि क्या किसी शहरी कॉपरेटिव बैंक को अन्य छोटे बैंकों के डिपॉजिट स्वीकार करने चाहिए ?
  1. छोटे वित्तीय बैंक, कॉपरेटिव बैंक और एनबीएफसी जैसे संस्थानों में प्रशासन की स्थिति को सुधारने के लिए निरीक्षण की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ाया जाना चाहिए।

कॉपरेटिव बैंकों में ब्याज दर अधिक होने के कारण अधिकांश लोग यहाँ पूंजी जमा करना चाहते हैं। अतः ग्राहकों का विश्वास जीतने के लिए इनका प्रशासन और नियमन दुरूस्त होना जरूरी है।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित लेख पर आधारित। 4 अक्टूबर, 2019