भारतीय न्यायिक व्यवस्था की समस्याएं
Date: 09-05-16
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर का प्रधानमंत्री के समक्ष अचानक भावुक हो जाना भारतीय न्यायिक व्यवस्था के गहराते संकट की ओर इशारा करता है। गौर करने की बात है कि आज पूरे देश में लगभग तीन करोड़ केस पेडिंग पड़े हुए हैं।
भारतीय न्यायिक व्यवस्था के सामने अभी कुछ मुख्य चुनौतियाँ निम्न हैं-
- भारतीय विधि आयोग के 40,000 जजों की नियुक्ति की सिफारिष के तीन दशक बाद भी अभी मात्र 18,000 जज हैं।
- सन् 2014 में भारतीय विधि आयोग ने सुझाव दिया था कि केवल उच्च न्यायलयों के पेडिंग केस निपटाने के लिए 1,000 अतिरिक्त जजों की आवश्यकता है।
- हमारे तंत्र में केस के सुलझाने की कोई नियत अवधि तय नहीं की गई है, जबकि अमेरिका में यह तीन वर्ष है।
- भारतीय न्यायिक डाटा ग्रिड के अनुसार निचली अदालतों में पडे़ दो करोड़ केस में से लगभग 10.83 प्रतिशत केस दस साल और लगभग18.1 प्रतिशत केस पाँच से दस सालों से पेडिंड पड़े हैं। इसके चलते ही सर्वोच्च न्यायधीश ने पिछले पाँच सालों से पेंडिग पड़े 81 लाख मामलों को वरीयता के आधार पर निपटाने पर जोर दिया था। यह स्वागत योग्य कदम था।
- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) द्वारा जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर की गई सिफारिषें भी सर्वोच्च न्यायधीश के पास पेंडिंग हैं। जल्दी ही विचार करके निर्णय लेने की घोषणा सर्वोच्च न्यायधीष ने की है।
- ब्रिटिश काल से चली आ रही न्यायलयों के लंबे अवकाश की प्रथा पर भी विचार की बहुत जरूरत है।
- जजों को सामान्य किस्म की जनहित याचिकायें (PIL) लेने से भी बचना चाहिए।
- केंद्र एवं राज्य सरकारों के मामले न्यायलयों में सबसे ज्यादा है। यह आंकड़ा 70 प्रतिशत के लगभग है। छोटे-मोटे और गंभीर केस की भी सीमाएं तय होनी चाहिए।
- भूमि संबंधी पुराने विवादों के निपटारे के लिए भी समय सीमा तय करने की जरूरत है। एक सर्वक्षण के अनुसार जिला अदालतों में चल रहे लगभग दो-तिराई केस जमीन जायदाद से जुड़े हुए हैं।
‘‘टाइम्स ऑफ इंडिया’’ के
सम्पादकीय पर आधारित
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