भारतीय नगरों की दयनीय स्थिति
Date:07-12-17
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हाल ही में ब्राजीलिया में विश्व के नगरों की स्थिति को लेकर एक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में मुख्य रूप से दो बातें सामने आईं।
- इसमें विश्व के सबसे खराब शहरों की निराशाजनक स्थिति पर ऊँगली उठाई गई। दुख की बात यह है कि दक्षिण एशिया के लगभग सभी नगर इस श्रेणी में आते हैं।
- यह सम्मेलन तीसरी दुनिया के देशों पर केन्द्रित था। इसमें जो मुद्दे उभरकर आए, वे भविष्य के लिए काफी खतरनाक थे।
सम्मेलन में नगरों को जाँचने का आधार स्वास्थ्य, शिक्षा, जनसंख्या घनत्व, स्वच्छ जल एवं वायु की उपलब्धता को रखा गया था। इसमें विकसित देशों के पैमाने; जैसे-पार्क, मनोरंजन, सामाजिक एकजुटता, संस्कृति या जीवन की गुणवत्ता तक पहुँच बन ही नहीं पाई।भारतीय शहर दूषित हवा, यातायात जाम और बाढ़ की समस्या से पीड़ित हैं। बुनियादी ढांचे और सुविधाओं के अभाव में हमारे नगर प्रतिदिन मर-मरकर जी रहे हैं। अगर देश के पाँच मुख्य महानगरों की स्थिति देखें, तो हर किसी में कोई न कोई बड़ी समस्या नजर आती है।दिल्ली में प्रदूषण की समस्या भयावह है। यह समस्या दशकों से चली आ रही है। तापमान के गिरने के साथ ही पार्टीक्यूलेट मैटर चेतावनी के स्तर पर पहुँच जाते हैं।
बैंगलुरू जैसे आई टी हब में ट्रैफिक जाम की समस्या विकट है। शहर में लगभग 70 लाख गाड़ियां हैं। 1970 की तुलना में इनमें 6,000 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। गाड़ियों की गति बहुत धीमी हो गई है।मुम्बई को भारत की व्यावसायिक राजधानी माना जाता है। वर्षा-ऋतु में हर वर्ष अत्यधिक वर्षा के कारण यहाँ का जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। वर्ष के लगभग चार महीनों के लिए जैसे जनजीवन थम सा जाता है।
कोलकाता में जन सुविधाओं का बहुत अभाव है। बिजली और जलापूर्ति यहाँ की सबसे बड़ी समस्यायें हैं। गंगा नदी के चलते यहाँ भूजल एवं वैटलैण्ड की भरमार होने के बावजूद दक्षिण एवं मध्य कोलकाता के अधिकतर भागों में जलाभाव है।चेन्नई की स्थिति,बाकी सबमें बेहतर है। परन्तु यहाँ की टूटी-फूटी सड़कें, जल-भराव, नालियों की व्यवस्था तथा सड़क पर लाइटों की कमी आदि ऐसी समस्याएं हैं, जो बुनियादी तौर पर गौर करने लायक हैं।
इन महानगरों की समस्याओं से जूझने के लिए जितने भी उपाय अभी तक किए गए हैं, वे निरर्थक सिद्ध हुए हैं। इन समस्याओं को सुलझाने के लिए नए मस्तिष्क और नए विचारों को सामने लाना होगा। इसके लिए नगर का मेयर या सीईओ (सिटी एन्फोर्समेन्ट ऑफिसर) नामक एक ऐसा अधिकारी नियुक्त किया जाए, जो पूरी तरह से उत्तरदायित्व लेकर कार्यवाही कर सके। समस्याओं के समाधान कई हैं। उन्हें एक सशक्त अधिकारी द्वारा लागू किए जाने की आवश्यकता है।आज भारतीय नगरों की स्थिति वुडी एलन के बताए चैराहे जैसी है, जहाँ एक रास्ता निराशा की ओर जाता है और दूसरा अवसान की ओर।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित गौतम भाटिया के लेख पर आधिारित।