बाढ़-प्रशासन:तटबंधों का निर्माण एवं प्रबंधन
Date:18-09-17
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देश के कई भागों में आई हाल की बाढ़ों से जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में अनेक समस्याएं जन्म ले लेती हैं। ये क्षेत्र अपनी विकास-यात्रा से काफी पीछे ढकेल दिए जाते हैं। इस लेख में हम इसके प्रबंधनके कुछ बिन्दुओं पर चर्चा कर रहे हैं।
- तटबंधों का निर्माण
बाढ़ को रोकने का एक बहुत ही कारगर उपाय तटबंधों का निर्माण है। यह मिट्टी का बना हुआ ऐसा उठाव होता है, जो नदी के किनारे बाढ़ के मैदानों के आकार को कम कर देता है। इससे बाढ़ का पानी कम क्षेत्र को घेर पाता है।लगभग 100 गांवों में बाढ़ का अध्ययन करने पर यह नतीजा सामने आया कि इन क्षेत्रों में बाढ़ की विकरालता वहाँ बने तटबंधों की स्थिति पर बहुत कुछ निर्भर करती है। जाहिर है कि तटबंधों के भीतर बसे लोगों की जान को अधिक खतरा रहा।तटबंध के बाहर ‘सुरक्षित’ क्षेत्रों में रहने वालों पर भी मुसीबत आई, परन्तु यह तटबंध निर्माण के कारण जल निकासी तंत्र में रुकावट के कारण या फिर पास में जुड़ी किसी बड़ी नदी के बाढ़ग्रस्त होने पर आई। बिहार की कोसी नदी और असम की बाढ़ ने तटबंध तोड़ दिए थे। इसके बावजूद नदी किनारे रहने वाले लोग तटबंधों की आवश्यकता महसूस करते हैं।
- तटबंधों का प्रबंधन
अभी तक तटबंधों का प्रबंधन सिंचाई या बाढ़-नियंत्रण विभाग के पास रहता है। परन्तु नौकरशाही इनके निर्माण के बाद इन्हें भूल जाती है। अच्छा यही होगा, अगर तटबंधों के प्रबंधन का जिम्मा आसपास रहने वाले लोगों को दे दिया जाए। इसके लिए सरकार की ओर से पहल की जानी चाहिए। मालिकाना हक अपने पास रखते हुए सरकार तटबंध प्रबंधन समितियों का निर्माण कर सकती है।
तटबंधों का प्रयोग अक्सर सड़क के रूप में भी किया जाता है। इन पर टोल-टैक्स लगाकर इसका अधिक भाग तटबंध के बाहर रहने वाले को दिया जाना चाहिए। इससे लोगों की तटबंध के अंदर रहने की प्रवृत्ति में कमी आएगी।तटबंध प्रबंधन के लिए विकेन्द्रीकरण की नीति पर जल्दी ही प्रयोग किए जाने चाहिए। बाढ़ की विभीषिका को रोकने में तटबंधों का सहभागिता से प्रबंधन बड़ी भूमिका निभा सकता है।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित निर्मल्य चैधरी के लेख पर आधारित।