बाढ़-प्रशासन
Date:25-08-17
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हाल ही में असम में आई बाढ़ का दौरा करने के बाद प्रधानमंत्री ने राहत कार्यों, पुनर्वास एवं पुर्नस्थापना के लिए 2,000 करोड़ देने की घोषणा की है। साथ ही 100 करोड़ की समग्र निधि से बाढ़ की समस्या के स्थाई समाधान के लिए एक उच्च स्तरीय समिति के गठन का निर्णय लिया गया है। परंतु आज सबसे अधिक आवश्यकता बाढ़ से बचाव के बजाय बाढ़ के दौरान सुनियोजित प्रशासन की है।
इस दौरान यह समझने की जरूरत है कि बाढ़ अंशतः एक प्राकृतिक आपदा होने के साथ-साथ मानवजनित आपदा भी है। अगर केवल उत्तर पूर्वी राज्यों को देखें, तो यहाँ पूर्वी हिमालय से निकलने वाली नदियों को अरूणाचल प्रदेश और असम में ढाल की कमी मिलती है। ऊँचाई में आने वाली कमी के कारण नदियों का जल बाढ़ के मैदानों में फैल जाता है, और बाढ़ आ जाती है। इसके अलावा होने वाले निर्माण कार्यों और पेड़ों के कटने के कारण भी बाढ़ का प्रकोप कुछ बढ़ा-चढ़ा होता है।
- बाढ़ से बचाव का एक तरीका तटबंधों का निर्माण बताया जाता है। असम, उत्तर प्रदेश आदि कुछ राज्यों के 96 जिलों में किए गए अध्ययन से पता चलता है कि तटबंध निर्माण का काम अच्छी लागत की मांग करता है। अरूणाचल और असम की भूगर्भीय और पारिस्थितिकीय को देखते हुए यहाँ बाँध बनाने का सीमित विकल्प है। अतः इस पर विवाद चल रहा है।
- बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लोगों में जल्द-से-जल्द सामान्य होने की भावना भरने की आवश्यकता है। बाढ़ के महीनों में बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। जल एवं स्वच्छता की समस्या भी सामने आ जाती है। इस दौरान डायरिया फैल जाता है। पशु-चिकित्सालयों की कमी से पशु मरने लगते हैं। यहाँ के लोग केवल जीवन-निर्वाह के लिए कृषि करते हैं। बाढ़ के महीनों में कृषि चैपट रहती है। पूरे भारत में 49 सिंचित भूमि की तुलना में असम में यह 10 ही है।
- बाढ़-प्रशासन में तीन स्तरों पर काम करके यहाँ की जनता को जल्द-से-जल्द सामान्य जीवन में लाया जा सकता है। इन तीन स्तरों में (1) बाढ़ की भेदयता को कम करने का प्रयत्न हो। असम के कई क्षेत्रों में बाढ़ संबंधी चेतावनी का लाभ हुआ है। (2) सेवाओं की पहुँच। गांवों में नावों की उपलब्धता से बच्चों का स्कूल जाना जारी रह सकता है तथा राहत कार्यों में तेजी आ जाती है। बिहार की तरह ऊँचे शौचालयों का निर्माण करके स्वच्छता की समस्या का कुछ हल मिल सकता है। साथ ही ऊँचे टूबवेल लगाए जाएं। इनकी कीमत सामान्य से अधिक होगी, परंतु बड़े पैमाने पर खरीदें जाने पर मूल्यों में भी कमी आ सकती है। (3) बाढ़-प्रभावित क्षेत्रों में उपलब्ध साधनों के बेहतर इस्तेमाल से उत्पादकता में वृद्धि करना। इस क्षेत्र के लोगों को बोरो धान जैसी जल्दी तैयार होने वाली फसल एवं तैरते हुए सब्जी-बागान जैसे नवोन्मेषी साधनों का ज्ञान दिया जाना चाहिए। बाढ़ में डूबे क्षेत्रों में वैज्ञानिक रूप से किए जाने वाले मछली-पालन को बढ़ावा देकर इस क्षेत्र के लोगों को बताया जा सकता है कि बाढ़ जैसी अपरिहार्य स्थितियों में भी जन-जीवन को सामान्य कैसे रखा जाए।
कई देशों में चल रहे रणनीतिक पर्यावरणीय आंकलन को ब्रहमपुत्र नदी के लिए भी चलाया जाना चाहिए। साथ ही ब्रहमपुत्र बोर्ड और बाढ़ नियंत्रण विभाग में अलग-अलग क्षेत्र के वैज्ञानिकों की मदद ली जानी चाहिए। देश के सभी बाढ़-उन्मुख क्षेत्रों के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों के सकेंद्रित द्रष्टिकोण की आवश्यकता है।
‘द इंडियन एक्सप्रेस‘में प्रकाशित निर्मलय चैधरी के लेख पर आधारित।