बांधों का उचित नियंत्रण हो

Afeias
12 Oct 2018
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Date:12-10-18

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किसी भी त्रासदी के बाद लोग उसके होने के कारणों पर कयास लगाते रहते हैं। साथ ही सामने आई विपदा से निपटने के उपायों पर भी विचार करते रहते हैं। केरल पर आई विपदा ने भी वहाँ के रहवासियों, प्रशासकों और नेताओं को त्रासदी से जुड़े अनेक बिन्दुओं पर विचार करने के लिए बाधित कर दिया है।

केरल की आपदा में बांधों की बड़ी भूमिका बताई जा रही है। कुछ मायनों में यह सही भी ठहरती है। परन्तु बांधों के उचित रखरखाव के साथ उसे ऐसे नियंत्रित करना संभव है कि भविष्य में वे किसी त्रासदी का कारण न बनें।

बांधों का उद्देश्य

पूरे विश्व में बांधों का निर्माण सिंचाई, पनबिजली और बाढ़-नियंत्रण के लिए किया जाता है। बांधों की भूमिका में बाढ़-नियंत्रण वाले भाग को कभी महत्वपूर्ण नहीं समझा गया है।

अक्सर होता यह है कि मानसून के दौरान बांधों में पानी एकत्रित किया जाता है, जिसे ग्रीष्म में सिंचाई और विद्युत ऊर्जा के काम में लाया जाता है। मानसून के पहले बांधों के जल-स्तर को अंतरराष्ट्रीय मानक के हिसाब से कम रखा जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि वर्षाकाल के अतिरिक्त जल को संरक्षित किया जा सके, और इसके बाद एक निश्चित मात्रा में जल छोड़ा जा सके। मई में थाईलैण्ड ने इसी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए वर्षाकाल से पहले बांधों को 60 प्रतिशत तक खाली कर दिया था।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में इस पद्धति पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। केरल की बाढ़ के कारण को समझने के लिए इतना ही काफी है। इस वर्ष आई प्रचुर वर्षा से हालात बिगड़ गए। अन्यथा बांधों को मानसून से कुछ पहले भी भरा रखने का सिलसिला तो सालों से चलता आ रहा है।

बांधों की भंडारण क्षमता

यह आवश्यक है कि मानसून के पहले बांधों की कम से कम 30 प्रतिशत संग्रहण क्षमता को खाली रखा जाए। मानसून के शुरू होने के साथ ही पानी छोड़ने के साथ-साथ उसकी संग्रहण क्षमता को धीरे-धीरे बढ़ाया जाना चाहिए। केरल में होने वाली वर्षा का कारण अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से चलने वाली हवाएं होती हैं। इस प्रकार के वातावरणीय दबाव को महीनों पहले बताया नहीं जा सकता। अतः हर हाल में बांधों की संग्रहण क्षमता को मानसून से पहले नियंत्रित किया जाना अत्यंत आवश्यक है।

नीतियों का निर्धारण कैसा हो

पनबिजली (हाइड्रोपावर) पर निर्भर रहना हमारी प्रवृत्ति बन गई है। जबकि पूरे विश्व में ऊर्जा के अन्य स्त्रोतों को तेजी से विकसित किया जा रहा है। 2015 में पूरे विश्व के ऊर्जा उत्पादन में पनबिजली का मात्र 16.6 प्रतिशत योगदान ही रहा है।

हमें सौर, पवन और ज्वारीय ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा देते हुए पनबिजली पर निर्भरता क्रमशः कम करनी होगी। इस मामले में कोच्चि विमान तल का उदाहरण अन्य सरकारी कार्यालयों के लिए सामने लाया जा सकता है, जहाँ सौर ऊर्जा का भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है।

बांधों की जल प्रबंधन नीति पर भी गौर किया जाना चाहिए। फिलहाल बांधों का प्रबंधन लोक निर्माण विभाग, बिजली विभाग और सिंचाई विभाग के पास है। तीन विभागों की आपसी खींचातानी में कई बार सही निर्णय नहीं हो पाते हैं। अतः राज्य बांध सुरक्षा प्राधिकरण को एक सशक्त एजेंसी बनाकर, उसे ही बांध के रखरखाव और नियंत्रण का अधिकार दिया जाना चाहिए। किसी एक विभाग को उत्तरदायी बनाए जाने से आपातकालीन स्थितियों से आसानी से निपटा जा सकेगा।

राज्य सरकार, राज्य बांध सुरक्षा प्राधिकरण एवं जल आयोग को मिलकर जल-प्रबंधन पर कुछ दमदार नीति बनाने व निर्णय लेने की आवश्यकता है, जिससे भविष्य में बाढ़ जैसी आपदाओं से बचा जा सके।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित मैथ्यू अब्राहम के लेख पर आधारित । 28 अगस्त, 2018