‘प्रसन्नता‘ के सही मायने क्या हैं ?
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- संयुक्त राष्ट्र की हाल ही की एक रिपोर्ट में नार्वे को विश्व का ‘सर्वाधिक प्रसन्न देश‘ घोषित किया गया है। इस सूची में डेनमार्क, फिनलैण्ड और आइसलैण्ड जैसे देश भी शीर्ष पर हैं। अमेरिका 14वें स्थान पर और यूनाइटेड किंगडम 19वें स्थान पर हैं। अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम के तनाव और अवसाद जिस प्रकार से वहाँ के सामाजिक जीवन को घेरे हुए हैं, उसे देखते हुए यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट प्रसन्नता के बारे में कदापि नहीं है।रोजमर्रा के जीवन में हम अक्सर कई ऐसी बातों में ‘हैप्पी‘ शब्द जोड़ देते हैं, जो वास्तव में प्रसन्नता से जुड़ी नहीं होती। प्रसन्नता के पर्याय के रूप में भी कई शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिनका प्रसन्नता से कोई लेना-देना नहीं है।
- आधुनिक समय में चिंताओं को भूलने का एक रास्ता खरीदारी है। इसका अर्थ यही लगता है कि प्रसन्नता केवल व्यावसायिक उत्पाद का दूसरा नाम है। प्रसन्नता को एक ऐसे उत्पाद की तरह प्रयोग किया जाने लगा है, जिसे आवश्यकतानुसार कागज में लपेटकर वितरित किया जा सके। हमारा समाज उत्पादों से अटा पड़ा है। इनमें से अधिकतर ऐसे हैं, जो हमें प्रसन्न रखने के लिए बनाए गए हैं।किसी ऐसे उत्पाद के रूप में प्रसन्नता का एकत्रीकरण और उपभोग उसकी आधुनिक परिभाषाओं का संकुचित रूप लगता है। ‘हैप्पी डेज़‘ से बढ़ते हुए धीरे-धीरे हम ‘हैप्पी आवर्स‘ तक पहुंच गए हैं।
- कैसी विडंबना है कि उपभोग से जुड़ी प्रसन्नता की ऐसी सीख जीवन के प्रारंभिक वर्षों में जन्मदिन के माध्यम से दे दी जाती है। ‘हैप्पी बर्थ डे‘ आज के समय का बहुत ही घटिया मुहावरा लगता है। जन्मदिन पर ‘हैप्पी बर्थ डे‘ कहकर क्या हम यह जताना चाहते हैं कि जन्मदिन पर हमें अनिवार्य रूप से प्रसन्न होना चाहिए। आज समाज के हर वर्ग में जन्मदिन पर खुश होने का मतलब केक काटने तथा नए कपड़े पहनने से ज़्यादा कुछ नहीं है। जन्मदिन मनाने के विचार को आज उपभोक्तावाद के अनुष्ठान तक सीमित कर दिया गया है। जबकि पहले जन्मदिन का अर्थ एक पार्टी करने के बहाने से ज्यादा ईश्वर को धन्यवाद देने और भविष्य के लिए प्रार्थना करने से होता था।
- अब हमने अपने हर धार्मिक और सांस्कृतिक महोत्सवों को ‘हैप्पी‘ होने या प्रसन्नता से जोड़ दिया है, जैसे- हैप्पी दीपावली, हैप्पी होली आदि। हम वास्तव में प्रसन्न हों या नहीं, लेकिन हमारे ऊपर प्रसन्न रहने का बहुत अधिक दबाव है। चूंकि हमने अप्रसन्न रहने के बहुत से उपाय ढूंढ निकाले हैं, इसलिए हम भी प्रसन्नता को प्राप्त करने के बजाय एक महोत्सव या अनुष्ठान के माध्यम से कभी-कभी प्रसन्न हो जाना बेहतर समझने लगे हैं। इन महोत्सवों के दौरान वाकई में जो प्रसन्न होने वाले लोग हैं, वे व्यवसायी हैं।
- खरीदारी और प्रसन्नता का यह संबंध सदियों से चले आ रहे स्वतंत्रता और प्रसन्नता के संबंधों का ही पर्याय लगता है। हमें स्वतंत्रतावादी विचारकों से अक्सर यह पाठ पढ़ने को मिलता रहा है कि हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन पर लगाए जाने वाले बंधन अप्रसन्नता को जन्म देते हैं। लेकिन वास्तविकता इससे परे है। जब से हमें पूर्ण स्वतंत्रता मिली है, हमने कष्ट उठाया है। ऐसी पूर्ण स्वतंत्रता की स्थिति में हम अपना संतुलन ही खो बैठते हैं। हम समझ ही नहीं पाते कि हमारा व्यवहार कब और कैसा हो ?स्वतंत्रता की सबसे ज़्यादा चर्चा सैक्स के संबंध में की जाती है। लेकिन क्या इस संबंध में पूर्ण स्वतंत्रता का उपभोग करने वाला व्यक्ति प्रसन्न है ?
- संबंधों से भागकर अपनी स्वतंत्रता का डंका बजाने वाले लोग क्या अधिक प्रसन्न हैं ? प्रश्न यही है कि क्या हमें प्रसन्न रहने के लिए स्वतंत्रता की आवश्यकता है ? अगर ऐसा है, तो स्वतंत्रता बिल्कुल असफल है, क्योंकि आज तक यही देखा गया है कि कुछ भी करने को स्वतंत्र रहने वाला व्यक्ति अंत में असंतुष्ट ही रहता है। बहुत अधिक बंधन में रहने वाले व्यक्ति के लिए भी यही बात लागू होती है। अतः मानव जीवन में मध्य मार्ग ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। लेकिन इसे ढूंढना एक कठिन काम है।
- अक्सर देखा गया है कि गरीब लोग अमीर लोगों की तुलना में अधिक प्रसन्न रहते हैं। यही बात बच्चों और वयस्कों के संबंध में भी कही जा सकती है। संगीत या किसी मनोरम दृश्य को देखकर मिलने वाली प्रसन्नता हमारी मानसिक प्रसन्नता या हर्ष से परे होती है। ठीक इसी प्रकार अपने बच्चे को देखकर माँ की प्रसन्नता को मानसिक संवेदना के पैमाने पर नापा नहीं जा सकता। वह तो कुछ और ही होती है। प्रसन्नता सुख से बड़ी कोई अनुभूति है, क्योंकि एक गरीब इंसान को गरीबी में रहने से कोई सुख नहीं मिलता, फिर भी वह प्रसन्न रहता है।
- प्रसन्नता के संबंध में प्रेम एक अच्छा उदाहरण हो सकता है। प्रेम हमेशा सुखदायक नहीं होता, लेकिन फिर भी उसके एहसास में प्रसन्नता होती है। जबकि हमेशा सुख में रहना प्रसन्नता के बजाय धीरे-धीरे बोरियत का एहसास कराने लगता है। आखिर प्रसन्नता की प्रकृति क्या है ? वास्तव में प्रसन्नता अपने अहम् का त्याग है। ऐसे त्याग के साथ उस स्थिति तक पहुँचने का नाम प्रसन्नता है, जिसमें हम संसार के साथ एकाकार हो जाते हैं। यह ऐसी अवस्था है, जहाँ ज्ञान, कृत्रिम भेदभाव और उपभोगवादी मूल्य कोई मायने नहीं रखते। इस अवस्था में किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं रहती। इससे व्यक्ति का व्यक्ति, प्रकृति और परम सत्ता के प्रति पूर्ण समर्पण होता है।
- विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बखानी गई प्रसन्नता, प्रसन्नता तो बिल्कुल भी नहीं कही जा सकती। अगर उन्हें वाकई प्रसन्नता से संबंधित कोई सूची बनानी है, तो इसके लिए उन्हें समाज की छोटी-छोटी उन गलियों में घूमना होगा, जहाँ लोग प्रतिदिन की जद्दोजहद से जूझते हुए भी प्रसन्न दिखाई देते हैं।
‘द हिंदू‘ में सुंदर सरूकई के लेख पर आधारित।
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