प्रकृति का इशारा है

Afeias
08 Apr 2020
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Date:08-04-20

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पिछले दो दशकों में वैश्विक अर्थव्यवस्था की भंगुरता दिखाई दे रही है। 2008 में आई आर्थिक मंदी के बाद, अब 2020 के कोरोनावायरस ने वैसा ही संकट खड़ा कर दिया है। पूर्व से लेकर पश्चिम तक पूरा तंत्र हिल गया है। वर्तमान की वैश्विक अर्थव्यवस्था, तंत्र की अराजकता की ओर संकेत कर रही है।

तंत्र सिद्धांत बताता है कि मुख्य रूप से तीन प्रकार के तंत्र होते है। अराजक तंत्र की प्रकृति मौसम में आंधी की तरह होती है। इसे नियंत्रित और पूर्वानुमानित नहीं किया जा सकता। हमारी अर्थव्यवस्था भी कुछ ऐसा ही रूप दिखा रही है। दूसरी ओर, इंजीनियर्ड तंत्र को पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है। इसमें कोई अचरज नहीं होते।

इन दोनों ही तंत्रों का विरोधी तंत्र प्रकृति का एक तंत्र होता है। यह जटिल आत्म अनुकूली तंत्र होता है। यह असंख्य नवोन्मेष करता है। यह निरंतर विकसित होता रहता है। फिर भी मूलभूत रूप से यह अत्यंत टिकाऊ होता है। मानवीय तकनीकों और इंजीनियरिंग के चमत्कारों ने वैश्विक आर्थिक प्रशासन के ढांचे के प्रति हमें सचेत करने की शुरूआत कर दी है। मानव निर्मित अचंभे अवरोध उत्पन्न करते हैं, परंतु प्रकृति निर्मित अजूबों से ऐसा कोई खतरा नहीं होता।

प्रकृति के आत्मानुकूलन में कुछ अनिवार्य डिजाइन के सिद्धांत होते हैं। इनमें से एक पारगम्य सीमाएँ हैं। इस तंत्र में परस्पर ऐसी सीमाएं काम करती हैं। हर भाग की एक अखंडता होती है। समय अनुसार हर भाग, दूसरे भागों के साथ सूचना और ऊर्जा का आदान-प्रदान करता है। इससे इसकी सीमाओं में लचीलापन रहता है।

1990 से शुरू हुए वैश्विक वित्तीय तंत्र ने ही 2008 की आर्थिक मंदी को जन्म दिया था। एक तरफ तो वैश्विक सप्लाई चेन ने अर्थव्यवस्थाओं को गति दी, तो दूसरी तरफ यही अर्थव्यवस्थाओं की भेधता, कोविड-19 जैसी महामारी को जन्म देने का कारण बन गई।

जटिल अनुकूलन तंत्र में अनेक आकार बनते हैं। उनके भाग जटिल होते है। सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय शक्तियां, सभी देशों को आपस में जोड़ती हैं, और देश के ही

विभिन्न भागों को भिन्न तरीके से आपस में जोड़ती हैं। इसके आकार एक दूसरे से मिलते-जुलते है, परंतु एकसामान नहीं हैं। इसलिए सभी के लिए एक ही समाधान काम नहीं कर सकता। अतः तंत्रों का सिद्धांत कहता है कि जलवायु परिवर्तन एवं आर्थिक असमानता आदि का समाधान स्थानीय स्तर पर ढूंढा जाना चाहिए।

संकट का समय हमारे तंत्रों या प्रणाजियों के स्वास्थ के लिए परीक्षा का समय होता है। कोविड-19 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की ढांचागत कमजोरी को उजागर कर दिया है। जो नेता अपनी अर्थव्यवस्था के उदारीकरण और वैश्वीकरण के विरोध में उतर आए थे, अब अपने नागरिकों और अर्थव्यवस्था के स्वास्थ की रक्षा में लगे हुए हैं। संकट की इस घड़ी में भारतीय अर्थव्यवस्था को छः सुधारों की आवश्यकता है।

  1. सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान किया जाए। भारतीय श्रम बाजार में काम करने वाले 90 प्रतिशत भारतीयों को उनके जीवन में स्थिरता और सुरक्षा की अत्यंत आवश्यकता है।
  1. अधिकांश भारतीयों के पालनकर्ता, अनौपचारिक क्षेत्र को पूरी प्रतिष्ठा दी जाए। यह लोगों को बहुतायत में रोजगार प्रदान करने के साथ-साथ नवाचार और उद्यमिता का केंद्र बना हुआ है।
  1. आर्थिक परिदृश्य में नीचे के बजाय ऊपर जाने का उत्साह लाया जाए। भारतीयों की आय बढ़ाई जाए। उनकी आय ही भारतीय बाजार को ऊपर उठा सकती है। इससे घरेलू और विदेशी निवेश बढ़ेगा।
  1. सार्वजनिक स्वास्थ सेवाओं को मजबूत बनाया जाए। स्वास्थ पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए।
  1. सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में सुधार और मजबूरी लाई जाए। इससे बच्चों का स्तर ऊपर उठेगा।
  1. भारतीय नगरों और कस्बों में स्थानीय स्तर पर समाधान के विकास के लिए स्थानीय प्रशासन को सुदृढ़ किया जाए।

कोविड-19 ने इशारा किया है कि विश्व के देश आपस में आर्थिक दूरी बनाकर रखें, और अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य की रक्षा अपने-अपने तरीके से करें। इससे संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था मजबूत होती जाएगी।

‘द इंडियन एक्सप्रेस‘ में प्रकाशित अरूण मायरा के लेख पर आधारित।

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