पेरिस समझौते में भारत की सशक्त भूमिका
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- हाल ही में पेरिस समझौते से अमेरिका के पीछे हटने के बाद भी बाकी के सदस्य देशों ने इस समझौते के प्रति प्रतिबद्धता दिखाई है। इन सदस्य देशों में भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण और उत्तरदायित्वपूर्ण है। विश्व में कार्बन उत्सर्जन के मामले में अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरे नंबर पर आता है। इस हिसाब से उसकी भूमिका अहम् हो जाती है। यही समय है, जब भारत को जलवायु के प्रति सकारात्मक और सशक्त कदम उठाते हुए अपने नेतृत्व को विश्व के सामने सिद्ध करना होगा। अमेरिका के राष्ट्रपति ने भी यही कहा है कि इस समझौते के सदस्य देशों को उन के वचनों के आधार पर नहीं, बल्कि उनके काम के आधार पर आंका जाएगा। भारत के पास पाँच ऐसे स्तम्भ हैं, जिनके आधार पर वह इन सदस्य देशों में अपनी अग्रणी भूमिका को सिद्ध कर सकता है।
- नीतियाँ – 2010 में जहाँ भारत की सौर ऊर्जा क्षमता 22,000 मेगावाट थी, वहाँ 2022 तक इसे 1,00,000 मेगावाट तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। इतना ही नहीं, बल्कि 2022 तक पवन ऊर्जा, जल विद्युत और बायोमास पर आधारित विद्युत क्षमता को भी बहुत अधिक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है।भारत के इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर ऊँगलियां उठनी स्वाभाविक है, क्योंकि भारत एक दशक में वह सब प्राप्त करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है, जिसे पूरा करने में जर्मनी को दो दशक से भी अधिक का समय लगा था। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि भारत अपने लक्ष्य में सफल होता है या नहीं। परंतु फिलहाल इन लक्ष्यों के निर्धारण से निवेशकों में उत्साह है, एक आकर्षक बाजार तैयार हो रहा है तथा नीति-निर्धारक ऐसा विद्युत तंत्र तैयार कर रहे हैं, जिनसे नवकरणीय ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग करके थर्मल पावर की कमी से निपटा जा सके।
- कार्यक्रम– भारत ने स्वच्छ ऊर्जा की ओर कदम बढ़ाया है। इसके लिए अनेक कार्यक्रम चलाए गए हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नवान्मेष कार्यक्रम के अंतर्गत लगभग8 करोड़ एलईडी बल्ब का वितरण किया गया है। इसकी कीमतों में भी बहुत कमी की गई है। एलपीजी में सब्सिडी देकर सरकार ने डायरेक्ट ट्रांसफर कार्यक्रम चलाया है। इससे करोड़ों घरों में स्वच्छ ईंधन का प्रयोग होने लगा है। यह विश्व का सबसे बड़ा कैश ट्रांसफर कार्यक्रम बन गया है।
- मूल्य -बहुत से यूरोपीय देशों ने नवीकरणीय ऊर्जा को उपभोक्ता-सब्सिडी के माध्यम से प्रोत्साहित करने की कोशिश की है, वहीं भारत ने सौर ऊर्जा के लिए नीलामी की प्रक्रिया शुरु करके ऐसी कंपनियों में प्रतियोगिता खड़ी कर दी है। इसके परिणामस्वरूप सौर ऊर्जा की दरें बहुत कम हो गई हैं। पवन ऊर्जा के क्षेत्र में भी यही नीति अपनाई जा रही है।अगर इन क्षेत्रों में भारत निवेशकों को और अधिक विश्वास में ले सका, तो यह अन्य देशों के लिए एक प्रकार का उदाहरण होगा कि किस प्रकार बोली लगाने में पारदर्शिता और सार्वजनिक वित्त की गारंटी से भी स्वच्छ ऊर्जा मिशन को पूरा किया जा सकता है।
- उत्पादकता– जलवायु परिवर्तन के कारण भारत जल-समस्या और कृषि-उत्पाद में हानि से लगातार जूझ रहा है। अगर भारत के 15 प्रतिशत पम्पसेट को सौर पम्पसेट में बदल दिया जाए, तो सौर ऊार्ज में 20,000 मेगावाट की बढ़ोत्तरी हो जाएगी। अगर कृषि में फसल बोने के तरीकों, बैंक ऋण आदि में आवश्यक परिवर्तन कर दिए जाएं, तो भारत के 39 प्रतिशत जिलों में मध्यम से उच्च क्षमता वाले सोलर पम्पों के साथ कृषि की उत्पादकता को बहुत बढ़ाया जा सकता है।
- साझेदारी – नवम्बर 2015 में भारत और फ्रांस ने अंतरराष्ट्रीय सौर समझौता किया था। इस समझौते में दोनों देशों ने सौर ऊर्जा की कीमतों में कमी करने, तकनीक में वृद्धि करने एवं सौर ऊर्जा के क्षेत्र में शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा देने पर सहमति जताई थी। इस समझौते पर 31 देश पहले ही हस्ताक्षर कर चुके थे। इस समझौते में सामान्य जोखिम को कम करने, सार्वजनिक कोष में वृद्धि करने एवं निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए अनेक प्रयासों को शामिल किया गया है।जलवायु परिवर्तन पर भारत को एक बात याद रखनी चाहिए कि विश्व के शेष देश चाहे जो भी कर रहे हों, भारत अपनी आय और प्रतिव्यक्ति उत्सर्जन के हिसाब से उन देशों की तुलना में बहुत अधिक प्रयत्नशील है, जो इससे ज्यादा प्रदूषण फैला रहे हैं। इस क्षेत्र में भारत को अन्य देशों के समक्ष एक उदाहरण बनकर खड़े होने का पूरा अधिकार है।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अरुणाभा घोष के लेख पर आधारित।
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