न्यूनतम आय गारंटी

Afeias
25 Feb 2019
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Date:25-02-19

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हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने घोषणा की है कि अगर उनका दल 2019 के आम चुनावों में बहुमत प्राप्त करता है, तो वे भारत के प्रत्येक निर्धन के लिए न्यूनतम आय गारंटी (एम आई जी) देना चाहेंगे। यह योजना, विश्व के अन्य देशों में चलाई जाने वाली सामाजिक सुरक्षा योजना से साम्य रखती है। इस घोषणा से तीन प्रश्न सहज ही उठ खड़े होते हैं।

  1. क्या भारत को इस योजना की वाकई जरूरत है?
  2. क्या हम इस पर होने वाले खर्च को वहन कर सकते हैं?
  3. क्या इसके माध्यम से गरीबों तक शत-प्रतिशत लाभ पहुँच सकेगा?

योजना की गहराई में जाकर अगर तथ्यों पर नजर डाली जाए, तो इन तीनों प्रश्नों का सकारात्मक उत्तर ही प्राप्त होता है।

  • भारत की कृषि-व्यवस्था चरमराती जा रही है। 1992-93 में इसका सकल घरेलू उत्पादन में योगदान 29 प्रतिशत था। यह घटकर 15 प्रतिशत रह गया है। जबकि कृषि पर लोगों की निर्भरता में बहुत मामूली ही कमी आई है। कृषि क्षेत्र से जुड़ी एक रिपोर्ट बताती है कि 52 मुख्य अर्थव्यवस्थाओं में भारतीय किसानों को सीमित विपणन, भंडारण और ऋण प्राप्त करने के अवसर के साथ काफी संघर्ष करना पड़ता है। सर्वेक्षण किए गए सभी देशों में केवल यूक्रेन ही ऐसा देश है, जहाँ स्थिति और भी खराब है। जबकि नॉर्वे के किसानों को 60 प्रतिशत समर्थन मूल्य के साथ सबसे खुशहाल माना जा सकता है।

इस रिपोर्ट से पता चलता है कि 17 वर्षों यानी लगभग 2000-01 से लेकर 2016-17 तक की अवधि में किसानों से 45 लाख रुपये करोड़ का कर प्राप्त किया गया है। अन्य देशों की तुलना में यह सर्वाधिक है।

पिछले पाँच वर्षों में मनरेगा से बहुत राहत नहीं पहुँचाई जा सकी है। जन-धन और विमुद्रीकरण से कृषि एवं असंगठित क्षेत्र पर पड़ी मार को देखते हुए कहा जा सकता है कि भारतीय निर्धनों को न्यूनतम आय गारंटी जैसी राहत दी जानी चाहिए।

  • योजना को वहन कर सकने संबंधी तथ्यों पर अगर ध्यान दिया जाए, तो हम देखते हैं कि 2016-17 के वित्तीय वर्ष में सरकार ने लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपये सक्षम व्यापारियों को विभिन्न माध्यमों से दिए हैं। इसमें कार्पोरेट छूट, कुछ करों से छूट आदि या विशिष्ट आर्थिक लाभ के माध्यम से दिए हैं।

दूसरी ओर, मनरेगा के सफलतम वर्षों में इसके अंतर्गत 5 करोड़ लोग ही लाभान्व्ति हुए । अगर सरकार कृषि एवं खाद्य सब्सिडी में कोई कटौती किए बिना, अमीरों को दिए गए इस धन को गरीबों की सुरक्षा की दिशा में मोड़ दे, तो आराम से भारत के प्रत्येक निर्धन परिवार को प्रतिवर्ष 30,000 रुपये दिए जा सकते हैं।

देश की 99.94 प्रतिशत कंपनियां 29 प्रतिशत का अधिकतम कर भरती हैं। 335 सबसे धनी कंपनियां, जिनका लाभ 500 करोड़ से ऊपर है, कोष में 23 प्रतिशत जमा करती हैं। इस अवस्था में न्यूनतम आय गारंटी के खर्च को वहन किया जा सकता है।

  • अगर हम तीसरे व अंतिम प्रश्न का उत्तर ढूंढने की कोशिश करें, तो देखते हैं कि भारत में प्रत्येक एक लाख की वयस्क जनसंख्या पर 14 बैंक-शाखाएं मौजूद हैं। लेकिन ये अधिकतर शहरों में मौजूद हैं। बाकी के 60 करोड़ लोगों के लिए लगभग सात लाख शाखाएं हैं। यानि 0.01 शाखा प्रति लाख जनसंख्या।

मोदी प्रशासन में 32 करोड़ जन धन खाते खोलने का लक्ष्य रखा गया था। दुख की बात यह है कि इस योजना के अंतर्गत खुले अधिकांश खाते या तो निष्क्रिय हैं, या इनका उपयोग काले धन को सफेद करने के लिए किया जा रहा है। अन्य इलैक्ट्रानिक माध्यम से भी निर्धनों को न्यूनतम आय भेजा जाना बहुत सुरक्षित नहीं है। इसके लिए हमारे डाकघर काम आ सकते हैं।

न्यूनतम आय गारंटी योजना की सफलता में कोई संदेह नहीं किया जा सकता, बशर्ते कि इसका क्रियान्वयन सही तरीके से किया जा सके।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अभीक बर्मन के लेख पर आधारित। 31 जनवरी, 2019

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