
न्यायपालिका में लैंगिक समानता
Date:03-10-18
To Download Click Here.
दरअसल, उच्चतम न्यायालय के निर्णय की प्रतिक्रिया इस रूप में की जाएगी कि हम वास्तव में किस प्रकार के समाज का निर्माण करना चाहते हैं। इसके लिए कैसे कदम उठाएं, जिससे सभी क्षेत्रों में हम उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।
कोलेजिम तंत्र को ही ऐसा वातावरण निर्मित करना चाहिए कि वह उच्चतम और उच्च न्यायालयों के अल्पकालीन व दीर्घकालीन संस्थागत लक्ष्यों के बारे में खुलकर चर्चा कर सके कि उन्होंने आने वाले समय में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए क्या सोचा है? सभी संस्थाओं में आरक्षण का होना कोई नई बात नहीं है। इस सबके साथ ही यह जरूरी है कि संस्थाएं, प्रतिनिधित्व की समानता की दिशा में आवश्यक कदम उठाती जाएं।
कोलेजियम में इस बात को सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उच्चतम व उच्च न्यायालयों के लिए न्यायाधीशों के चुनाव के दौरान भी महिला न्यायाधीशों को शामिल किया जाएगा। इस प्रकार की व्यवस्था के लिए किसी न्यायिक या संवैधानिक सुधार की आवश्यकता भी नहीं है।
वर्तमान प्रस्ताव स्वागत योग्य होते हुए भी व्यापक स्तर पर यह सोचने को मजबूर करता है कि इतने प्रगतिवादी समाज में भी हम महिलाओं को केवल 10 प्रतिशत प्रतिनिधित्व ही दे पा रहे हैं।
नेतृत्व, शक्ति के उपयोग और उत्तरदायित्व के वहन वाले सभी क्षेत्रों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का यही हाल है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की अपनी चुनौतियां हैं। इनमें न्यायालय ऐसा स्थान रखते हैं, जिनको लोग प्रेरणा के रूप में ग्रहण करते हैं। वर्तमान में, न्यायालय को ऐसा अवसर प्राप्त हो गया है, जिसके माध्यम से वह इसे प्रमाणित कर सकती है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित प्रतिभा जैन और सी राजकुमार के लेख पर आधारित। 20 अगस्त, 22018