
नवोन्मेष ही उच्च शिक्षा की कुंजी है
Date:13-11-18 To Download Click Here.
मानव और मशीन का साथ तो सदियों पुराना रहा है। परन्तु आज के संदर्भ में वे संज्ञानात्मक स्तर पर बराबरी करते नजर आते जा रहे हैं। उनके बीच का अंतर धूमिल होता जा रहा है। वर्तमान स्थितियों में भारत के लिए कई प्रकार की चुनौतियां हैं, जिनका सार्थक समाधान उच्च शिक्षा के माध्यम से ढूंढा जा सकता है। हमारे पास युवा वर्ग की अपार शक्ति है। इसको रोजगार दे पाना एक चुनौती है। यह काम तब और भी मुश्किल हो जाता है, जब मशीनें मानव का विकल्प बनती जा रही हों। दूसरी ओर, जलवायु परिवर्तन के कारण वायु, जल और मृदा पर संकट बढ़ता जा रहा है।
इन स्थितियों में हम आने वाली पीढ़ी को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए कैसे तैयार कर सकते हैं ?
वर्तमान स्थितियों से निपटने के लिए शिक्षा को एक ऐसा नया दृष्टिकोण देने की आवश्यकता होगी, जिसमें तकनीक, मानवता और नैतिकता का समन्वय हो। वह विचारों और कार्यप्रणाली में तादात्म्य स्थापित करने वाली हो।
भारत के उच्च शिक्षा संस्थान अपने स्नातकों को नौकरी या व्यवसाय के लिए तैयार करते हैं। विश्व में किसी व्यक्ति के जीवनकाल में छः बार व्यवसाय बदलने या अपने को नए कौशल में ढालने की उम्मीद की जाती है। ऐसे में भारत की उच्च शिक्षा की सोच बहुत सीमित लगती है। वर्तमान दौर में लिबरल आर्टस् को बहुत महत्व दिया जा रहा है, परन्तु इसकी भी अपनी सीमाएं हैं। इसमें न तो लचीलापन है, और न ही तकनीक के साथ समन्वय स्थापित करने की क्षमता।
उच्च शिक्षा का उद्देश्य युवाओं को केवल करियर के लिए नहीं, बल्कि जीवन के लिए तैयार करना होना चाहिए। आज जब पूरे विश्व में लोगों के पास समय की कमी होती जा रही है, और आपस के संबंधों में तेजी से बदलाव आ रहा है; ऐसे में विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा मिले कि वे अपने अंदर झांककर देखने की फुर्सत पा सकें। वे अपने जीवन के उद्देश्य को समझ सकें, समाज में अपनी भूमिका को जान सकें, और यह निश्चित कर सकें कि उनके विचारों और कामों का विश्व पर क्या प्रभाव पड़ेगा। उन्हें ऐसी नैतिक चुनौतियों से जूझना सिखाया जाना चाहिए, जो आने वाले समय में अपरिहार्य होंगी।
एक उच्च शिक्षा संस्थान ऐसी शिक्षा कैसे प्रदान कर सकता है ?
अगर ऐसी शिक्षा को पाठ्यक्रम में विभाजित किया जाता है, तो आधार पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों को सोचने और अभिव्यक्ति की शक्ति दी जानी चाहिए। ऐसी पहल समाज विज्ञान, प्राकृतिक विज्ञान, मानविकी, कला एवं साहित्य के विषयों से की जानी चाहिए। कोर पाठ्यक्रम में जीवन के लिए कौशल विकास, नैतिकता पर आधारित तर्क-वितर्क, डाटा-विज्ञान, डिजाइन थिंकिंग एवं प्रभावशाली संप्रेषण आदि होना चाहिए। संकेन्द्रित पाठ्यक्रम में विषय से संबंधित विस्तृत अध्ययन के साथ वास्तविक जीवन में आने वाली समस्याओं से निपटना सिखाया जाए। अलग-अलग क्षेत्रों में गहन शोध को बढ़ावा देकर उन पर सम्पूर्ण दृष्टि से विचार किया जाए। इससे ज्ञान को निरंतर प्रवाह मिलेगा। शिक्षा के साथ अनुसंधान को जोड़कर उसे प्रासंगिक बनाया जा सकेगा।
क्या भारतीय उच्च शिक्षा वास्तव में विश्व पर राज कर सकती है ?
इसके लिए अलग-अलग क्षेत्रों को आपस में जोड़कर चलने वाली शिक्षा पद्धति को अपनाना होगा। सरकार ने उत्कृष्ट संस्थानों को चुनने का जो अभियान चलाया है, वह प्रशंसनीय है। परन्तु चयनित छः संस्थानों तक ही कार्य रुकना नहीं चाहिए। इन संस्थानों को आगामी दस वर्षों में विश्व के सर्वोत्तम 500 संस्थानों में अपना स्थान बनाने से परे भी सोचना होगा। इसके लिए संस्थानों को नवोन्मेष पर ध्यान देना होगा। सरकार को चाहिए कि वह शिक्षा संस्थानों के नियमन में लचीलापन रखे। ऐसा करके बहुत से संस्थानों को नवोन्मेषोन्मुखी बनाया जा सकेगा।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित कपिल विश्वनाथन के लेख पर आधारित। 6 अक्टूबर, 2018