तालिबान के प्रति रूस का नजरिया

Afeias
16 Mar 2017
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Date:16-03-17

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दिसम्बर  2016 में रूस के नेतृत्व में एक सम्मेलन हुआ था, जिसमें चीन और पाकिस्तान को भी बुलाया गया था। इन तीनों देशों ने मिलकर तालिबान से समझौता करने की ओर कदम बढ़ाने का फैसला लिया। जबकि तालिबान एक ऐसा आतंकवादी संगठन है, जिसे पाकिस्तान का समर्थन हासिल है और जो अफगानिस्तान की प्रजातांत्रिक सरकार को पदच्युत करना चाहता है। भारत और अफगानिस्तान ने इस सम्मेलन का विरोध किया था। इसके फलस्वरूप रूस ने इन दोनों देशों के साथ ईरान को भी बातचीत के लिए आमंत्रित किया।

  • भारत का मत
  • भारत और अफगानिस्तान चाहते हैं कि ये देश आतंकवादी संगठनों के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के प्रस्तावों का ही पालन करें। रूस, ईरान और पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को स्वीकार करने को तैयार हैं। परंतु उन्होंने तालिबान से वार्ता खत्म करने की बात को नहीं माना।
  • भारत को लगता है कि अफगानिस्तान में तालिबान और आई एस के संगठनों के बीच भेद करना गलत है। दरअसल, अफगानिस्तान में जिस आई एस समूह ने आतंक मचा रखा है, वह वास्तव में पूर्व तालिबानियों, स्थानीय तालिबान विरोधियों, कुछ भगौड़ों और अपराधियों का ही संगठन मात्र है, जो आई एस के झंडे के नीचे अपनी गतिविधिया चला रहा है।

भारत का यह भी मानना है कि तालिबान एक बुरा संगठन है। जब 1990 में उन्होंने जब काबुल पर राज किया था, तब वे नृशंस शासक साबित हुए थे। उन्होंने ओसामा बिन लादेन और अलकायदा को अफगानिस्तान में शरण दे दी थी। अब तालिबानियों से किसी प्रकार की बातचीत करके उनकी वापसी के द्वार खोलने से उन सभी अफगान योद्धाओं और अंतरराष्ट्रीय सेनाओं का अपमान होगा, जिन्होंने अफगानिस्तान से तालिबान को हटाने की लड़ाई लड़ी और निरंतर लड़ रहे हैं। इसके लिए भारत को पूरी दुनिया को यह याद दिलाना होगा कि तालिबान से वार्ता करना एक तरह से खतरे को आमंत्रित करना है।

इस पूरे घटनाक्रम में रूस को यह डर है कि सीरिया में युद्ध समाप्त होते ही वहाँफैले आई एस के 5000 आतंकवादी अफगानिस्तान में आ बसेंगे और धीरे-धीरे ये मध्य एशिया के देशों में अपने पैर पसारने लगेंगे। ईरान को भी इसी तरह का डर है कि अफगानिस्तान में बसने के बाद ये आतंकवादी वहाँ के शियाओं को निशाना बनाकर ईरान से अपनी मनमानी करवाएंगे। आई एस को एक बड़ा खतरा मानते हुए रूस और ईरान तालिबानियों से वार्ता कर उन्हें अपनी ओर मिलाना चाहते हैं। अब भारत का मत जानने के बाद शायद ये दोनों देश और पूरा विश्व तालिबानियों के लिए अपना दृष्टिकोण बदले और उसे वाकई एक आतंकवादी संगठन मानते हुए उससे वैसा ही व्यवहार करे।

इंडियन एक्सप्रेस के संपादकीय पर आधारित।

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