डेटा की सुरक्षा डी पी ए के हाथ

Afeias
07 Aug 2020
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Date:07-08-20

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हाल ही में सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69 के अंतर्गत , भारत में चल रहे 59 चीनी एप पर प्रतिबंध लगा दिया है। संबंद्ध मंत्रालय व्दारा लिए गए इस निर्णय के पीछे व्यक्तिगत डेटा की छानबीन , प्रोफाइलिंग और अनधिकृत उपयोग को रोकना है। 16 जुलाई , 2020 को करेंट कंटेंट में प्रौद्योगिकीय संप्रभुता की सुरक्षा नामक शीर्षक में पहले ही यह बताया जा चुका है कि किस प्रकार से चीनी कंपनियां छलपूर्ण व्य्वहार करके हमारी संप्रभुता पर छद्म हमला करती रहती है। भारत को यह खतरा केवल चीन से ही नहीं , बल्कि अन्य देशों की कंपनियों से भी हो सकता है। इस हेतु एक सशक्त डेटा सुरक्षा प्राधिकरण या डेटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी ( डी पी ए) की नितांत आवश्यकता है।

डी पी ए की आवश्य‍कता क्यों ?

  • व्यक्तिगत डेटा प्रोटेक्शन विधेयक , 2019 डीपीए को केन्द्र और राज्यों के अनेक निकायों को विनियमित करके 1.3 अरब भारतीयों की गोपनीयता की रक्षा का भार सौंप सकता है।
  • सेबी , आई आर डी ए , ट्राई से अलग यह एक निरपेक्ष निकाय होगा , जिसे केन्द्र , राज्य , न्यायपालिका व कैग को न केवल दंडित करने , बल्कि आर्थिक क्षेत्रों में कटौती करने का भी अधिकार होगा।

डीपीए की सीमाएं एवं विशेषताएं

  • यह संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा की श्रेणियों को अधिसूचित करने हेतु केन्द्र को परामर्श देने वाली संस्था के रूप में कार्य करेगा। हालांकि इस प्रकार की शक्तियां पूरी तरह से डीपीए के पास होनी चाहिए।
  • विधेयक की धारा 86 के तहत केन्द्र को अधिकार है कि वह डीपीए को बाध्यकारी दिशा-निर्देश जारी कर सकता है। इससे डीपीए की स्वायत्तता पर दुष्प्रभाव पड़ेगा।
  • देश के लिए महत्वपूर्ण न्यासीय को सूचित करना, डीपीए का अधिकार है , परन्तु सोशल मीडिया मध्यस्थों को महत्वपूर्ण न्यासीय के रूप में सूचित करने का अधिकार केन्द्र को दिया गया है।
  • सरकार के सभी स्तरों पर डेटा न्यासीय को विनियमित करने का अधिकार डीपीए को है। राज्य सूचना आयोग की तरह ही यह एक विकेन्द्रीकृत निकाय है , जो इसे जमीनी स्तर पर डेटा संरक्षण अधिकारों के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिए कुशल , चुस्त और लचीला बनाता है।
  • विधेयक में उद्योग , व्यापार संघों , सरकारी विभागों , अन्य क्षेत्रीय नियामकों और प्रथाओं के कोड के निर्माण में जनता की भागीदारी को अपनाया गया है।
  • विनियमन प्रक्रिया अपारदर्शी है।
  • डीपीए को डेटा न्यासीयों पर किए जाने वाले निरीक्षण और पूछताछ के परिणामों को प्रकाशित करने का उत्तरदायित्व दिया जाना चाहिए।
  • डीपीए को आर टी आई के अधीन रखा जाना चाहिए।

प्रौद्योगिकी और डेटा विज्ञान के क्षेत्र में परिवर्तन की तेज गति को देखते हुए , इस क्षेत्र में गुणात्मक और मात्रात्मक रूप से डीपीए की क्षमता को बढ़ाया जाना चाहिए। किसी भी कानून या नीति की सार्थकता उसके प्रवर्तन पर निर्भर करती है। आने वाले समय में डिजीटल जगत की चुनौतियों को देखते हुए अगर डीपीए को काम करने के अधिकार दिए जाते हैं , तो वह एक मॉडल बन सकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अमर पटनायक के लेख पर आधारित। 24 जुलाई , 2020

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