डिजीटल होती अर्थव्यवस्था और भारत

Afeias
15 Apr 2019
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Date:15-04-19

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पिछले कुछ वर्षों में मशीनी बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में तकनीक से जुड़ी कंपनियों ने बहुत सी उपलब्धियां प्राप्त की हैं। गूगल ब्रेन, फेसबुक लर्नर फ्लो, माइक्रोसॉफ्ट, कॉगनिटिव सर्विस, एमेजोन, लिनक्स आदि ऐसी महारथी कंपनियां हैं, जो हमारे जीवन और व्यवसाय को आर्टिफिशियल इंटेलीजेन्स के माध्यम से नियंत्रित और परिवर्तित कर रही हैं।

ए आई के माध्यम से भाषाओं का अनुवाद आसान हो गया है। वॉयस रेकगनिशन सिटम ने घरों में अपनी जगह बना ली है। फीवर, अपवर्क, मैकेनिकल आदि कंपनियां तकनीकों के ई-मार्केट में अपनी सेवाएं दे रही हैं। टर्क जैसी कंपनियां पूरे विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करने के लिए एक मंच का काम कर रही हैं।

ऑक्सफोर्ड इंटरनेट इंस्टीट्यूट के अनुसार सेवाओं की मांग उत्तरी देशों में अधिक है, और इसकी पूर्ति फिलीपीन्स और भारत जैसे देश अधिकतर कर रहे हैं। 2015 की विश्व बैंक रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक सेवाओं के ई-बाजार की वृद्धि 25 अरब डॉलर तक हो जाने का अनुमान है।

मेकिंस्से की एक रिपोर्ट के अनुसार वस्तुओं के व्यापार की अपेक्षा सेवाओं का व्यापार 60 प्रतिशत तेजी से बढ़ रहा है। इसके साथ ही सेवाओं के व्यापार में परिवर्तन भी आता जाएगा। ए आई इंजन के साथ डायलॉग संचालित प्रक्रियाएं, बैंक, ऑफिस तथा नौकरियों की आउटसोर्सिंग की जगह ले सकती हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा।

भारत को क्या करना चाहिए ?

भारत को अपनी जनसंख्या का लाभ उठाते हुए डिजीटल श्रमिक तैयार करने चाहिए। इसके लिए समय की मांग को देखते हुए श्रमिकों को कुशल बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। मलेशिया और नाईजीरिया जैसे देशों ने डिजीटल श्रमिक या सेवाएं देने के मंच से जुड़ने के लिए सबसे निचली श्रेणी के कर्मचारियों को तैयार करना शुरू कर दिया है।

इस हेतु साक्ष्य आधारित भविष्योन्मुखी नीति बनाई जानी चाहिए, जिसमें सेवाओं की मांग, आयात या निर्यात, उनकी भौगोलिक स्थितियां एवं गंतव्य देश की पूरी जानकारी दी जा सके।

नीति को तैयार करने में डिजीटल डाटा नियम, कर-प्रक्रिया, छोटे व मझौले उद्यमों के भुगतान तंत्र को आसान बनाने एवं उद्यमियों को संलग्न करने का ध्यान रखा जाना चाहिए। इन डिजीटल मंचों को एकाधिकार के वर्चस्व से बचाए जाने के लिए नियमन प्रक्रिया को भी ठीक करना होगा।

वस्तुओं के व्यापार की तरह ही सेवाओं के व्यापार को भी अनेक बाधाओं से गुजरना होगा। पश्चिमी देशों के बाजार अपने काम के लिए भारतीय वकील, डॉक्टर या डिजायनर की सेवाएं लिया जाना पसंद नहीं करेंगे। भारत को इन चुनौतियों के लिए तैयारी रखते हुए डिजीटल श्रमिकों का निर्माण करना होगा।

डिजीटल क्षेत्र में प्राप्ति

मेकिंस्से की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका, यू.के., चीन जैसे 17 देशों के सर्वेक्षण में तेजी से डिजीटल होती अर्थव्यवस्था में इंडोनेशिया के बाद भारत का दूसरा स्थान है।

2018 के आंकड़ों को देखने पर पता चलता है कि भारत में 56 करोड़ लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं। इस क्षेत्र में चीन के बाद हमारा दूसरा स्थान है। औसत रूप में एक भारतीय सप्ताह में 17 घंटे सोशल मीडिया में व्यतीत करता है।

भारतीय जनसमुदाय के डिजीटल होने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि गरीब तबके को शिक्षा, स्वास्थ्य और जीविका से संबंधित अवसर और सेवाएं सुचारू रूप से दी जा सकती हैं, जो पिछले वर्षों में संभव नहीं थी।

एक अनुमान के अनुसार 2025 तक डिजीटल होती अर्थव्यवस्था की मदद से विनिर्माण, निर्माण, कृषि, व्यापार, वित्त, मीडिया और लॉजिस्टिक में रोजगार के अवसर बढ़ाकर उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सकेगा।

सुनियोजित नीतियों का प्रतिपादन करके कुछ क्षेत्र में होने वाले रोजगार के नुकसान की भरपाई की जा सकेगी। अतः हमें इस दिशा में एक सोची-समझी रणनीति को अपनाना होगा।

विभिन्न समाचार-पत्रों पर आधारित।