डिजीटल इंडिया को सुदृढ़ करने की जरूरत

Afeias
27 Dec 2016
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Date: 27-12-16

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सरकार ने डिजीटल इंडिया की शुरूआत तो की, लेकिन उस पर ध्यान इतना केन्द्रित नहीं किया कि यह योजना अपने लक्ष्य को पूरा कर सके। विमुद्रीकरण की घोषणा से प्रधानमंत्री ने डिजीटल लेन-देन की बात तो कही, परन्तु डिजीटल इंडिया को फिर भी याद नहीं किया। 8 नवम्बर से लेकर आज तक सरकार लगातार डिजीटल लेन-देन के बारे में बहुत कुछ कर रही है। इसे प्रोत्साहन देने के लिए कई तरह की छूट, ईनाम आदि की घोषणा कर रही है। सरकार अगर वास्तव में डिजीटल लेन-देन को बढ़ावा देना चाहती है, तो सबसे पहले उसे डिजीटल इंडिया को मजबूत बनाना होगा।डिजीटल इंडिया का जो स्वप्न देखा गया है, उसके अनुसार डिजीटल बैंकिंग के क्षेत्र में 2019 तक भारत विश्व के देशों में अग्रणी होगा।

  • इस स्वप्न में भारत के सभी नागरिकों को डिजीटल रूप से सशक्त करने का भी लक्ष्य रखा गया है। लेकिन धरातल के स्तर पर तथ्य कुछ और ही कहते हैं
    • डिजीटल इंडिया की सफलता के लिए एक अच्छी संयोजक प्रणाली पहली आवश्यकता है। और इसको सफल बनाने के लिए पूरे देश में ऑप्टिकल फाइबर केबल का जाल बिछाना होगा। इससे लगभग5 लाख गांव जोड़े जाएंगे। सन् 2017 का यह लक्ष्य तो अभी बहुत दूर है। मार्च 2016 के लक्ष्य में एक लाख ग्राम पंचायतों को इससे जोड़ा जाना था, जिसमें से मात्र 8,000 ग्राम पंचायत ही जुड़ पाए थे। अक्टूबर 2016 तक यह संख्या बढ़कर मात्र 15,000 हो पाई है।
    • अगर डिजीटल इंडिया अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार चलता, तो अभी तक 2,00,000 गाँवों को इंटरनेट से जोड़ा जा चुका होता। साथ ही ई-एज्यूकेशन, ई-कॉमर्स और ई-बैंकिंग जैसी सेवाएं भी शुरू हो चुकी होतीं। इससे दूर-दराज के क्षेत्रों को बहुत लाभ पहुंचता। ग्राम पंचायतों में बैंकिंग संपर्क वाले लोग मिनी-बैंक शाखा की तरह काम कर रहे होते। इससे उत्तराखंड जैसे इलाकों में 20-30 कि.मी. की दूरी तय करके बैंक शाखा पहुंचने वाले लोगों की जिन्दगी बहुत आसान हो जाती।
    • डिजीटल इंडिया कार्यक्रम का लक्ष्य 2019 तक लगभग 10 करोड़ रोजगार उपलब्ध कराना भी है। इसमें से कुछ करोड़ का लक्ष्य तो प्राप्त कर लिया गया है। लेकिन डिजीटल इंडिया की कमजोरी के कारण विमुद्रीकरण के दौर में जिन लाखों लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है, उसके लिए कौन जिम्मेदार है?

सरकार ने डिजीटल इंडिया का लक्ष्य प्राप्त किए बिना ही जिस प्रकार से भ्रष्टाचार और काले धन को खत्म करने के नाम पर विमुद्रीकरण किया है, इसे बुद्धिमानीपूर्ण कदम नहीं कहा जा सकता।

बहरहाल, डिजीटल लेन-देन से भ्रष्टाचार खत्म नहीं होने वाला है। दूसरे, मोबाइल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए विमुद्रीकरण करना भी आवश्यक नहीं था। सरकार को अपने डिजीटल इंडिया कार्यक्रम को इतना सशक्त बनाना होगा कि समाज अपने आप ही मुद्रारहित (Cashless) लेन-देन में सहूलियत महसूस करने लगे। बात तभी बनेगी।

इकॉनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित मनोज गैरोला के लेख पर आधारित।