जल समस्या और निदान
Date: 13-05-16
लगातार दो वर्षों से मानसून की खराब स्थिति ने देश के जल संकट को गहरा दिया है।
आबादी लगातार बढ़ रही है, जबकि जल संसाधन सीमित हैं। अगर अभी भी हमने जल संरक्षण और उसके समान वितरण के लिए उपाय न किए, तो मराठवाड़ा जैसा सूखा पूरे देश को ग्रस लेगा। जल समस्या पर नीति आयोग ने कुछ ऐसे आंकड़े और समाधान दिए हैं, जिन पर वाकई ध्यान देने की जरूरत है।
- नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में विश्व की 17 प्रतिशत जनसंख्या रहती है, जबकि इसके पास विश्व के शुद्ध जल संसाधन का मात्र 4 प्रतिशत ही है।
- किसी भी देश में अगर प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1,700 क्यूबिक मीटर से नीचे जाने लगे तो उसे जल संकट की चेतावनी और अगर 1,000 क्यूबिक मीटर से नीचे चला जाए, तो उसे जल संकटग्रस्त माना जाता है। भारत में यह फिलहाल 1,544 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति आ गया है, जिसे जल की कमी की चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है।
- नीति आयोग ने यह भी बताया है कि उपलब्ध जल का 84 प्रतिशत खेती में, 12 प्रतिशत उद्योगों में और 4 प्रतिशत घरेलू कामों में उपयोग होता है।
- हम चीन और अमेरिका की तुलना में एक ईकाई फसल पर दो से चार गुना जल अधिक उपयोग करते हैं।
- देश की लगभग 55 प्रतिशत कृषि भूमि पर सिंचाई के साधन नहीं हैं। ग्याहरवीं योजना के अंत तक भी लगभग13 करोड़ हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के अंतर्गत लाने का प्रवधान था। इसे बढ़ाकर अधिक-से-अधिक 1.4 करोड़ हेक्टेयर तक किया जा सकता है। इसके अलावा भी काफी भूमि ऐसी बचेगी, जहाँ सिंचाई असंभव होगी और वह केवल मानसून पर निर्भर रहेगी।
- भूजल का लगभग 60 प्रतिशत सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जाता है। 80 प्रतिशत घरेलू जल आपूर्ति भूजल से ही होती है। इससे भूजल का स्तर लगातार घटता जा रहा है।
समाधान
- लोगों में जल के महत्व के प्रति जागरूकता लाए जाने की बहुत जरूरत है।
- ऐसे बीज तैयार करने की जरूरत है, जिनमें पानी की कम खपत हो।
- हमें एक ऐसी सक्रिय नीति बनाने की जरूरत है, जो जल संधाधनों पर पूरा नियंत्रण रखे।
- इन सबसे ऊपर अब जल संबंधी राष्ट्रीय कानून बनाया जाना चाहिए। हांलाकि संवैधानिक तौर पर जल का मामला राज्यों से संबंधित है, लेकिन अभी तक किसी राज्य ने अलग-अलग क्षेत्रों को जल आपूर्ति संबंधी कोई निश्चित कानून नहीं बनाए हैं।
‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित
जयदीप मिश्र के लेख पर आधारित