जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरुकता लाना जरूरी है

Afeias
13 Sep 2018
A+ A-

Date:13-09-18

To Download Click Here.

जलवायु परिवर्तन में ऐसी शक्ति है, जो जन-जीवन को तहस-नहस भी कर सकती है, और संवार भी सकती है। इसके प्रभावों के बारे में समय-समय पर तमाम भविष्यवाणियां की जाती रही हैं। संयुक्त राष्ट्र के धारणीय लक्ष्यों से संबंधित 2018 की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि भूख और विस्थापन का एक बहुत बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि 2030 से 2050 के बीच बढ़ने वाली मृत्यु की संख्या का कारण जलवायु परिवर्तन से जन्मा कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और बढ़ती गर्मी होगा।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसका दुष्प्रभाव भारत समेत अनेक विकासशील देशों पर ही अधिक होगा। विश्व बैंक का अनुमान है कि अगले तीस वर्षों में जलवायु परिवर्तन से भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 2.8 प्रतिशत की कमी आएगी, और यह देश की लगभग आधी जनता के जीवन-स्तर के हृास का कारण बनेगा। इस परिप्रेक्ष्य में यह प्रश्न स्वाभाविक ही उठ खड़ा होता है कि क्या जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने की संभावना रखने वाली जनता को इसके दुष्प्रभावों का ज्ञान भी है? क्या उन्हें पता है कि यह परिवर्तन उनके स्वास्थ्य, जीविका, उनके परिवार और समुदाय के जीवन को किस प्रकार प्रभावित करने वाला है?

प्रयास

जलवायु परिवर्तन के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए समय-समय पर अनेक प्रयास किए गए हैं। 1991 में उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर केन्द्र और राज्य सरकारों ने स्कूली शिक्षा में इससे जुड़ा पाठ्यक्रम रखा है। 2003 में इस दिशा-निर्देश को दोहराया गया, जिसके परिणामस्वरूप अनेक कार्पोरेट संस्थानों, शोध एवं शिक्षण संस्थानों, गैर-सरकारी संगठनों आदि ने लोगों के अंदर जलवायु परिवर्तन के प्रति समझ विकसित करने का बीड़ा उठाया है। इन सबके बावजूद जिस गति से इस पर काम होना चाहिए, वह नहीं हो रहा है। सरकारी प्रयासों में गरीबी उन्मूलन, स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं मानवाधिकारों को प्रमुखता दी जा रही है। जलवायु परिवर्तन संबंधी प्रयासों के अभाव का ही परिणाम केरल की बाढ़ के रूप में सामने आया है।

क्या किया जा सकता है ?

फिलहाल 2013 के कंपनी एक्ट की सातवीं अनुसूची में जलवायु परिवर्तन को विशेष स्थान नहीं दिया गया है। अगर इसे कार्पोरेट सामाजिक दायित्व (सी एस आर) में एक विशेष अध्याय की तरह जोड़ दिया जाए, तो विभिन्न संगठन भी अपने क्रियाकलाप में इसे वैसा ही महत्व देगें और जागरूकता भी फैलाएंगे। इस क्षेत्र में निवेश भी बढ़ेगा। राष्ट्रीय सी एस आर डाटा पोर्टल रिपोर्ट बताती है कि कार्पोरेट जगत ने पर्यावरण, पशु-कल्याण एवं संसाधनों के संरक्षण पर 2014-15 में 801 करोड़ एवं 2015-16 में 912 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इसका अर्थ यह है कि ऐसे समूह पर्यावरण से जुड़े विषयों पर निवेश करने को इच्छुक हैं।

फिल्म एक लोकप्रिय माध्यम है, जिसके द्वारा सभी वर्ग के लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और उसके शमन व अनुकूलन के बारे में अवगत कराया जा सकता है। साहित्य और गेमिंग के जरिए भी इस विषय पर ज्ञान दिया जा सकता है। देश में जलवायु परिवर्तन के कारण प्रतिवर्ष आने वाली प्राकृतिक आपदाओं को देखते हुए ग्रामीण और शहरी जनता कोइसके प्रभावों से जूझकर जीवन को जल्द से जल्द सामान्य स्थिति में लौटा लाने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित सोहिनी मित्रा के लेख पर आधारित। 21 अगस्त, 2018