जलवायु परिवर्तन का मंडराता खतरा और भारत
Date:08-12-17
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जलवायु परिवर्तन पर बने संयुक्त राष्ट्र के अन्तर-सरकारी पैनल की पाँचवीं मूल्यांकन रिपोर्ट में विस्तार के साथ यह बताया गया है कि यह किस प्रकार से मानवीय क्रियाकलापों का ही नतीजा है। भारत में पिछले 100 वर्षों में पृथ्वी की सतह का तापमान 0.80 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। किसी क्षेत्र में यह कम बढ़ा है, तो किसी क्षेत्र में ज्यादा। अखिल भारतीय स्तर पर यदि मानसूनी वर्षा को देखें, तो पश्चिमी मध्यप्रदेश, पूर्वात्तर राज्यों, गुजरात व केरल के कुछ भागों में इसमें कमी और पश्चिमी तट, उत्तरी आंध्रप्रदेश व उत्तर-पश्चिम भारत में इसमें वृद्धि देखी गई है।
जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में अन्य प्रकार के बदलाव भी देखने में आ रहे हैं –
- देश के मध्य व पूर्वी भागों में तेज वर्षा की घटनाएं बढ़ी हैं। परन्तु सूखे व बाढ़ में कोई महत्वपूर्ण वृद्धि या कमी के लक्षण नहीं मिले हैं।
- इस सदी के दौरान भारतीय तटों पर औसत समुद्र स्तर लगभग 130 मिमी. प्रतिवर्ष बढ़ रहा है।
- भारतीय उष्ण देशीय मौसम विज्ञान संस्थान का अनुमान है कि सदी के अंत तक सालाना औसत तापमान वृद्धि दो अलग-अलग परिदृश्यों के तहत तीन से पांच डिग्री और 2.5 से चार डिग्री सेल्सियस के बीच होने की आशंका है।
- पश्चिमी तट, पश्चिमी मध्य भारत और पूर्वोत्तर क्षेत्र में गहन वर्षा की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
- जलवायु परिवर्तन से ताजे पानी, कृषि योग्य भूमि और तटीय व समुद्री संसाधन जैसे भारत के प्राकृतिक संसाधनों के वितरण और गुणवत्ता में परिवर्तन आ सकता है।
- ब्रह्मपुत्र, गंगा और सिंधु नदी प्रणालियां हिमस्खलन में कमी के कारण प्रभावित हो सकती हैं।
- नर्मदा और ताप्ती को छोड़कर सभी नदी घाटियों के कुल बहाव में कमी आ सकती है।
- समुद्र तल में वृद्धि के कारण तटीय क्षेत्रों के निकट के ताजे जलस्रोत लवण यानी खारेपन से प्रभावित हो सकते हैं।
खाद्यान्न उत्पादन पर प्रभाव
- वायुमंडल में कार्बन का स्तर बढ़ने से गेहूं व धान की उपज में कमी आ सकती है।
- फल, सब्जियां, चाय, कॉफी, सुगंधित व औषधीय पौधों की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
- दुग्ध व मछली उत्पादन में कमी आ सकती है।
रोगाणुओं पर प्रभाव
- रोगाणुओं व कीटों की संख्या तापमान की आद्र्रता पर निर्भर होती है। मलेरिया आदि का विस्तार नए क्षेत्रों में हो सकता है।
- यदि तापमान में 3.8 डिग्री से. की वृद्धि और इसकी वजह से आद्र्रता में 7 प्रतिशत की वृद्धि होती है, तो भारत के नौ राज्यों में वे पूरे 12 महीने मारक बने रहेंगे।
अन्य प्रभाव
- भारी जनसंख्या वाले क्षेत्रौं; जैसे तटीय, शुष्क और अद्र्धशुष्क क्षेत्रों में बुआई वाले क्षेत्र जलवायु संबंधी जटिलताओं और वृहत् जल प्रपातों से प्रभावित होते हैं। इनमें से लगभग दो-तिहाई हिस्से पर सूखे का खतरा है।
- लगभग 4 करोड़ हेक्टेयर भूमि के साथ-साथ उत्तर और पूर्वोत्तर कटिबंध में अधिकांश नदी की घाटियों में बाढ़ का खतरा है। इससे औसतन तीन करोड़ लोग प्रभावित होते हैं।
- उष्णकटिबंधीय चक्रवात की गहनता में 15 प्रतिशत की वृद्धि देश में भारी जनसंख्या वाले तटीय क्षेत्रों पर एक खतरा पैदा करती है।
जलवायु परिवर्तन के कारण –
जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक भी हैं, और मानव निर्मित भी हैं।
- महाद्वीपीय भूखंडों के खिसकने के कारण महासागरों एवं वायु के बहाव में परिवर्तन होता है। इससे जलवायु परिवर्तन होता है। इसके कारण हिमालय पर्वत श्रृंखला प्रतिवर्ष 1 मिमी. बढ़ती जा रही है।
- ज्वालामुखी के फटने से निकलने वाली गैस और राख के कारण सूर्य की रोशनी प्रभावित होती है।
- महासगरीय धाराएँ धरती के लगभग 71 प्रतिशत भाग को घेरती हैं, और ये वायुमंडल एवं भूतल की तुलना में सूर्य के विकिरण का दोगुना अवशोषित करती हैं।
- कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि सौर ऊर्जा में वृृद्धि के कारण तापमान में वृद्धि हुई है।
- कूड़े को जलाना, गाड़ियों का प्रदूषण, अनेक विद्युत उपकरणों का प्रयोग तथा पेड़ों का कटना आदि ऐसे अनेक मानवजन्य कारण हैं, जो जलवायु परिवर्तन के लिए उत्तरदायी हैं।
- भारत और आसपास के समुद्री तटों की रेत खनिज से भरपूर है। दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, श्रीलंका, थाईलैण्ड और भारत इसका दोहन कर रहे हैं।
- हिन्द महासागर एक प्रमुख समुद्री जलमार्ग है, जिससे अफ्रीका, मध्य-पूर्वी एवं पूर्वी एशिया के देश यूरोप और अमेरिका से जुड़े हुए हैं। इस मार्ग से पेट्रोलियम एवं इससे जुड़े अन्य उत्पादों का परिवहन होता है। इस मार्ग पर जहाजों की अधिकता के कारण पर्यावरणीय खतरे उत्पन्न हो गए हैं। कई समुद्री प्रजातियों को खतरा उत्पन्न हो गया है।
- विश्व में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने के साथ ही भारत कार्बन-डाइ-आॅक्साइड के उत्सर्जन में भी तीसरे स्थान पर आ गया है। यही कारण है कि हमारा देश जलवायु परिवर्तन के शिकार देशों की सूची में बहुत ऊपर है।
उपाय
- जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपवटने के लिए सरकार ने एक सलाहकार परिषद् का गठन किया है। परिषद् ने सरकार, उद्योग और सिविल सोसायटी सहित मुख्य पक्षधारियों से सलाह मशविरे के बाद कई दिशा-निर्देश दिए हैं।
- सरकार ने लगभग दस साल पहले जलवायु परिवर्तन पर एक कार्ययोजना शुरू की थी।
- इससे जुड़े आठ राष्ट्रीय मिशन शुरू किए गए हैं।
उम्मीद है कि सभी कार्यक्रम हमें जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे नुकसान से बचाने में मददगार साबित होंगे।
‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में प्रकाशित अखिलेश गुप्ता के लेख पर आधारित।