घर से दूर प्रवासी मजदूर

Afeias
07 Apr 2020
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Date:07-04-20

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25 मार्च को देशभर में हुए लॉकडाउन ने अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले असंख्य मजदूरों की आजीविका के साधनों को खत्म कर दिया है। इससे एक बात समझ में आ रही है कि देश को स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के साथ-साथ रिक्शेवालों, ठेले-रेहड़ी वालों और दिहाड़ी कमाने वाले श्रमिकों के बढते असंतोष और असुरक्षा की भावना के लिए त्वरित कदम उठाने होंगे।

हमारी मंत्री ने इस हेतु 1.7 लाख करोड़ रुपये का पैकेज घोषित किया है। इसके अंतर्गत वंचित वर्गों को खाद्यान्न उपलब्ध कराना, मनरेगा की दिहाडी को बढ़ाना, विधवाओं और पेंशन उपभोक्ताओं को अग्रिम राशि देना तथा स्वयं सहायता समूह की महिलाओं की ऋण सीमा में विस्तार आदि शामिल हैं। इन कदमों को अपर्याप्त बताया जा रहा है। प्रवासी श्रमिकों के लिए इन्हें असंवेदनशील भी माना जा रहा है। मनरेगा के माध्यम से इन्हें राहत तभी प्राप्त होगी, जब ये अपने गांव पहुँच सकें, और वहां भी किसी प्रकार का काम करने को हो। स्वयं सहायता समूह के द्वारा दी गई राहत भी प्रवासी महिला श्रमिकों के लिए राहत देने वाली नहीं है।

केंद्र ने फिलहाल प्रवासी मजदूरों की व्यवस्था का भार राज्य सरकारों पर डाला है। उनके ठहरने और भोजन की व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं। इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। पूरे देश में राज्यों को आपसी तालमेल में प्रवासी मजदूरों के लिए हेल्पलाइन बनाकर काम करना चाहिए। पिछले तीन वर्षों से जीएसटी काउंसिल को लेकर राज्यों ने जिस प्रकार का समन्वय और सहयोग किया है, उसी प्रकार इस महामारी से निपटने के लिए भी केंद्र और राज्यों के बीच एक प्रकार की साझेदारी का वातावरण बनाए जाने की आवश्यकता है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 28 मार्च, 2020