खाद्य बाजार को दुरूस्त करने की जरूरत

Afeias
09 Jun 2020
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Date:09-06-20

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देश के खाद्य बाजार की समस्याओं को देखते हुए हाल ही में कुछ अहम् घोषणाएं की गई हैं। ये घोषणाएं इन समस्याओं को दूर करने की दिशा में कुछ उम्मीद जगाती हैं।

कृषि को लेकर अगर कॉबवेव मॉडल को देखें, तो अच्छी फसल के बाद कीमतों में गिरावट आती है। इससे बुआई का रकबा कम होता है। कीमतों में उछाल आती है, और पुन: बुआई बढ़ती है। ऐसा चक्र चलता रहता है। बाजार अर्थव्यवस्था से जुड़ी इन समस्याओं को हल करने के लिए निजी व्यक्तियों को तीन बड़े तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए। (1) कौन-सी फसल की बुआई , (2) कच्चे माल में निवेश की मात्रा तथा (3) भंडारण। इन तीनों आधारों पर लिए गए निर्णय ही खाद्य बाजार का भविष्य तय करते हैं। लेकिन इन पर निर्णय लेने के लिए वैसा वातावरण बनाना सरकार का दायित्व है।

हाल की घोषणाओं ने ऐसा ही वातावरण बनाने की दिशा में कुछ काम किया है। इसके लिए चार तत्वों की आवश्यकता है।

  1. बाजार आधारित भंडाकरण तंत्र विकसित करना बहुत जरूरी है, ताकि मौजूदा सार्वजनिक वितरण प्रणाली और केन्द्रीय भंडारण से छुटकारा मिल सके। निजी स्तर पर लोग भविष्य की कमियों का अनुमान लगाकर ही भंडारण करते हैं।
  1. लोग भविष्य की कमी का अनुमान कैसे लगाएंगे ? किसान के लिए बुआई की फसल तय करने का आधार वायदा बाजार होता है। यह भविष्य में खाद्यान्न की कीमतों का पूर्वानुमान लगाता है। एक व्यवस्थित बाजार के साथ कोई किसान बुआई और भंडारण को लेकर भी निर्णय ले सकता है।

वायदा कारोबार में बहुत से ऐसे प्रतिबंध हैं, जिन्हें हटाने की आवश्यकता है। भारतीय बाजार को वैश्विक बाजार से जोड़ने की जरूरत है।

  1. भारत को व्यवस्थित वित्तीय बाजारों से जोड़ने की जरूरत है, क्योंकि जब देश में किसी प्रकार का गतिरोध उत्पन्न होता है, और कीमतों में गिरावट आती है, तो निर्यात करना श्रेयस्क होता है। वहीं जब देश में कमी होती है, और कीमतों में उछाल आता है, तो आयात करना देशहित में होता है।

ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार के साथ तालमेल बैठाने के लिए निजी फर्मों की संगठनात्मक क्षमता को भी मजबूत बनाया जाना चाहिए।

  1. देश का आंतरिक व्यापार भी खाद्य बाजार में स्थिरता लाने का महत्वपूर्ण घटक है।

इस हेतु सरकारी हस्तक्षेप को दूर करने के साथ व्यापारियों को देश में कहीं भी व्यापार करने की छूट देनी होगी। श्रम आधारित और उच्च‍ मूल्य वाले कृषि निर्यात में शामिल होने की छूट मिले। गेहूं और चावल जैसी पूंजी आधारित खेती कम की जाए।

इन चारों तत्वों को व्यवस्थित करके कॉबवेब मॉडल के दुष्चक्र को दूर करने में मदद मिलेगी।

  • हाल में की गई घोषणाएं भंडारण और आंतरिक बाजार से संबंधित हैं।
  • कृषि क्षेत्र में मौजूद सरकारी हस्तक्षेप स्वायत्तता को सीमित करता है। वैधानिक विश्लेषण के बाद नया कानून तैयार करने की नीति बनाई जा सकती है।
  • संविधान के अनुच्छेद 301 में कहा गया है कि देश भर में व्यापार और वाणिज्य नि:शुल्क होना चाहिए। इससे एकीकृत राष्ट्रीय बाजार तैयार करने की संभावनाएं उत्पन्न‍ होती हैं। इस पर विचार किया जा सकता है।
  • खाद्य व्यापार में आने वाली प्रशासनिक बाधाओं को चिन्हित करके उसकी समीक्षा की जा सकती है।
  • अल्पावधि में बाजार आधारित व्यशवस्था लागू हो जाएगी।

खाद्य बाजार में पारंपरिक विकास संबंधी सोच ने नकारात्मक परिणाम ही दिए हैं। देश की गरीबी दूर करने के लिए खाद्य जैसे बुनियादी क्षेत्रों में व्या‍पक सुधारात्मक कदम उठाए जाने ही चाहिए।

समाचार पत्र पर आधारित।