क्या खाद्यान्न एवं ईंधन को पॉलिसी दर का निर्धारण करना चाहिए?
केन्द्रीय सांख्यिकीय कार्यालय ने हाल ही में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
(Consumer Price Index) के आधार वर्ष तथा उसमें शामिल की जाने वाली वस्तुओं के भार (Weightage) में परिवर्तन किया है। इसमें निम्न मुख्य परिवर्तन किये गये हैं-
- वर्ष 2012 को नया आधार वर्ष मानते हुए इसे 100 माना गया है। यानी की इस वर्ष CPI 100 था।
- इसमें शामिल की जाने वाली वस्तुओं में खाद्यान्न तथा ईंधन (पान, तम्बाकू तथा नशीले पदार्थों सहित) का भार (Weights) % निश्चित किया गया है।
रिजर्व बैंक आफ इंडिया तथा वित्त मंत्रालय ने इसे स्वीकार करते हुए कहा है कि अब पॉलिसी दर तथा मुद्रास्फीति जैसी नीतियों के लिए यही उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मूल आधार होगा।
सरकार के इस निर्णय के विरोध में ‘दि इकॉनामिक टाइम्स’ ने 20 मई 2016 को अपना सम्पादकीय लिखा। उसने निम्न दो आधारों पर इसका विरोध किया है।
- खाद्यान्न एवं ईंधन को इसमें इतना अधिक महत्व देना अव्यावहारिक है, क्योंकि इनकी कीमतें अर्थव्यवस्था की बजाय अन्य स्थानीय तथा तात्कालिक कारणों से प्रभावित होती रहती हैं। उदाहरण के लिए मौसम, स्टोरेज की कमी, परिवहन का संकट आदि।
पिछले कुछ सालों से अनाज की कीमतें इस कारण भी बढ़ी, क्योंकि लोग अच्छी क्वालिटी के अनाज की मांग करने लगे थे। - विश्व की महत्वपूर्ण तथा विकसित अर्थव्यवस्थाओं में इन्हें इतना अधिक महत्व नहीं दिया जाता। उदाहरण के तौर पर ब्रिटेन में इन दोनों वस्तुओं का वेटेज6 प्रतिशत ही है।
वस्तुतः ऐसा करने का सीधा दुुष्प्रभाव सरकार की नीतियों पर पड़ेगा, क्योंकि यह उपभोक्ता मूल्य सूचकांक अर्थव्यवस्था में हो रही कीमतों में परिवर्तन का सही एवं संतुलित प्रतिनिधित्व नहीं करता है।
‘दि इकॉनामिक टाइम्स’ के सम्पादकीय से साभार.