कोरोना पीड़ित संसार के लिए मूलमंत्र

Afeias
18 May 2020
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Date:18-05-20

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अपनी मशहूर पुस्तक ‘द ब्लैक स्वानश’ में नसीम निकोलस तालेब ने एक ऐसी दुर्लभ, अनपेक्षित, विषम और व्यापक प्रभाव डालने वाली घटना की परिकल्पना की है, जो पूरे वैश्विक परिदृश्य को बदलकर रख देती है। वर्तमान के कोरोना संकट की भी इसी से तुलना करते हुए उससे जुड़े अनेक तर्क दिए जाएंगे, परन्तु इन सबका कोई अर्थ नहीं है। हमें इस संकट के लिए ठोस समाधान चाहिए। इसके चलते हमारा ध्यान विज्ञान की ओर ही जाता है।

चीन से शुरू हुए लॉकडाउन की नकल विश्व के अनेक देशों ने की। भारत सहित अनेक देशों की जीवनचर्या रुक सी गई। इस स्थिति को विज्ञान की भाषा में ‘‘सस्पेंडेड एनीमेशन” कहा जाता है। हाइबरनेशन भी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे मौसमी संकट से निपटने के लिए कई पशु इस्तेमाल में लाते हैं। इसमें उनकी शारीरिक प्रक्रिया इतनी सुस्त हो जाती है कि न्यूनतम की मांग करती है। मौसम के सुधरने पर शरीर अपनी सामान्य गतिविधियां करने लगता है। आज हमारा समाज भी हाबरनेशन की स्थिति में है।

यह एक ऐसा दौर है, जो भविष्य की गतिविधियों के लिए हमें तैयार रहने के संकेत दे रहा है। इसमें सबसे पहला संकेत तो हमें अंग्रेजी दवाईयों के लिए मिल रहा है। महामारी से निपटने में हवाईयां निष्फल सिद्ध हो रही हैं। भविष्य में हमें इस प्रकार की आपदाओं के लिए अपना ही एक तंत्र विकसित करना चाहिएए जो कम कीमत वाला हो तथा दया और समानता पर आधारित हो। इस हेतु हमारी सरकार अनुसंधान के लिए अधिक से अधिक निवेश करे।

अभी तक धनी वर्ग के लिए जीवन का अर्थ अधिक से अधिक उपभोग करना रहा है। वे सामान्यतः तो विलासिता के अभाव की शिकायत कर सकते हैं, परन्तु जीवन की बात आते ही वे उससे समझौता कर लेते हैं। दूसरी ओर, निर्धन को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की ही पूर्ति चाहिए। उन्हें घूमने-फिरने और विदेश यात्राओं की जरूरत नहीं है।

भविष्य की आर्थिक नीति को भी साधने की आवश्यकता है। हमारे अर्थशास्त्री शेयर बाजार के बढ़ने और एक दिन में साफ हो जाने वाली काल्पनिक पूंजी के परिचालन से परेशान हैं। अगर हम वास्तविक आर्थिक परिप्रेक्ष्य की बात करें, तो ही यह भविष्य के लिए बेहतर होगा। आज हमारी विकास दर का अनुमान 1.5-2 प्रतिशत लगाया जा रहा है, जिसे सम्हाल लिया जाएगा। वास्तविक संकट दिहाड़ी मजदूरों का है। सरकार को उनके नुकसान की क्षतिपूर्ति करनी चाहिए।

प्रत्येक संकट मानवजाति को कोई सबक दे जाता है। यह दौर भी हमें अपने पारिस्थितिकी पर पुनर्विचार करने के लिए आगाह कर रहा है। आज के इस युग का मंत्र यही है कि हम अपने सकल घरेलू उत्पाद की धीमी चाल के साथ-साथ धीमी गति से विकास करते जाएं। इसमें सामाजिक कल्याण भी सम्मिलित हो।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित प्रमोद गर्ग के लेख पर आधारित। 7 मई 2020