कृषि को पोषण से जोड़ने की आवश्यकता है।

Afeias
10 Oct 2017
A+ A-

Date:10-10-17

To Download Click Here.

विश्व की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है। एक अनुमान के अनुसार 2050 तक यह बढ़कर 9 अरब हो जाएगी। इनमें से 5 अरब लोग केवल एशिया के वासी होंगे। बढ़ती जनसंख्या के साथ पोषक खाद्य या अन्न का उत्पादन कर पाने में हम अभी पीछे हैं। इस चुनौती का सामना करने के लिए हमें धारणीय विकास के अंतर्गत शोध को बढ़ावा देना होगा।पिछले 5 दशकों में अन्न उत्पादन के क्षेत्र में किए जाने वाले अनुसंधान के कारण ही हमें कृषि विज्ञान संबंधी बेहतर तकनीकें मिली हैं, जो अच्छी उपज वाली फसलों की किस्मों के विकास में सहायक बनी हैं। इसके बावजूद भारत अपने ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षा एवं कुपोषण की चुनौतियों से जूझ रहा है।

  • पूरे एशिया का ध्यान एकीकृत कृषि उत्पादन, पोषण एवं स्वास्थ्य की ओर बढ़ रहा है। नीति निर्माताओं ने अन्न में पोषण तत्वों की मात्रा को बढ़ाने के लिए पारिस्थितिकीय एवं स्थानीय कृषि के तरीकों के महत्व पर बल देना शुरू कर दिया है।
  • भारत में भी ऐसी एक योजना के तहत अनुसंधानकत्र्ताओं ने ग्रामीण क्षेत्रों को चुनकर वहाँ पारंपरिक फसल, सब्जी एवं फल के पेड़ों को लगवाया। साथ ही उनकी आय बढ़ाने के लिए पशुपालन भी करवाया। इनमें से ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को लगभग दुगुनी सब्जियां उसी कीमत पर मिल सकीं, जो उन्हें स्थानीय बाजार से खरीदते हुए देनी पड़ती थीं।
  • सन् 2013 के खाद्य सुरक्षा विधेयक में रागी को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल किया गया था, जो बहुत ही सफल कदम रहा। रागी में अन्य अनाजों की तुलना में पोषक तत्व अधिक होते हैं। इसी राह पर चलते हुए हमें सूक्ष्मपोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए जैव प्रभाव पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • कृषि एवं पोषण के क्षेत्र में महिलाओं को सशक्त करना जरूरी है। कृषि के 70% कामों में निपुण होने के बावजूद महिलाओं को मुख्य कामों में नहीं लगाया जाता। कृषि बाजारों तक उनकी पहुंच नहीं बन पाती। वे आय से वंचित रह जाती हैं।

कृषि और पोषण की जड़ों को पहचानकर उनपर शोध किए जाने की जरूरत है। इसके लिए अलग-अलग क्षेत्रों से मदद ली जानी चाहिए। भारत में कृषि अनुसंधान का क्षेत्र काफी विकसित है। इस क्षेत्र में हो रहे अनुसंधान हमारे देश की खाद्य चुनौतियों का सामना करने के लिए लगातार प्रयासरत हैं।

   ‘ हिंदू में प्रकाशित एम.एस. स्वामीनाथन एवं जीन लेबल के लेख पर आधारित।