एक व्यक्तित्व : दीन दयाल उपाध्याय

Afeias
09 Oct 2017
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Date:09-10-17

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हाल ही में दीन दयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी मनाई गई है। कुछ सरकारी योजनाएं उनके नाम पर चलाई गई हैं। वे भारतीय जनसंघ के नेता रहे हैं। उन्होंने भारतीय विचारधारा एवं राजनीति को नई दिशा देने में महती भूमिका निभाई। उनकी आदर्शवादी विचारधारा के कारण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में उनका सम्मानजनक स्थान रहा है। यहॉं तक कि संघ परिवार का सामाजिक-आर्थिक दर्शन उनके आदर्शों पर ही आधारित है। प्रधानमंत्री की गरीब कल्याण नीति भी उनके आदर्शों से प्रेरित है।तत्कालीन राजनीति में उनके विचारों का इतना अधिक प्रभाव था कि उत्तर प्रदेश के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री संपूर्णानंद ने उपाध्याय जी की ‘पॉलिटिकल डायरी’ की प्रस्तावना लिखते हुए उन्हें देश के प्रति समर्पित नेता बताया है।

दीन दयाल उपाध्याय के विचारों और आदर्शों की वर्तमान भारत में अधिक प्रासंगिकता दिखाई पड़ती है। उनके लिए राजनीति कोई व्यवसाय नहीं, बल्कि एक मिशन था। वे जातिगत राजनीति के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने अपनी पार्टी को तत्काल लाभ के लिए पार्टी आदर्शों को त्यागने से हमेशा रोका।उन्होंने भारतीय राजनीति को प्रभावित करने वाली पश्चिमी मानसिकता का सदैव विरोध किया। उनका मानना था कि भारतीय राजनीति के दक्षिण और वामपंथी गुटों में बंटे होने के कारण जन कल्याण की सृजनात्मक एवं परिवर्तनकारी सोच यथार्थ रूप नहीं ले पा रही है। उनके इस प्रयास के कारण 1960 में सभी दलों ने एकजुटता दिखाई। आपस में विचारों का आदान-प्रदान भी किया गया।

वे प्रतिक्रियावादी राजनीति को उचित नहीं समझते थे। उनका मानना था कि इस तरह के माहौल में सृजनात्मकता के लिए स्थान नहीं रह पाता है।उपाध्याय जी का मानना था कि राजनीति का नियंत्रण धनी लोगों के हाथ में न होकर जनता के हाथ में होना चाहिए। उन्होंने इस बात की चेतावनी दी थी कि अगर इसे ठीक करने के उपाय नहीं किए गए, तो प्रजातंत्र में ऐसे शक्तिशाली गुट बन जायेंगे, जो जन-कल्याण  एवं राष्ट्रीय हितों के बारे में शायद ही विचार कर पाएं।

उन्होंने वामपंथियों और दक्षिणपंथियों को एकजुट करने के लिए ‘तृतीय पथ’ का जो मार्ग दिखाया था, उसमें उनकी अविभाज्य मानवता के मूल दर्शन की ही झलक मिलती है, जिसका समग्र दृष्टिकोण जन-कल्याण है। उनका मत था कि संतोष और प्रसन्नता की राह में भौतिकवाद, अध्यात्म और नियंत्रित इच्छाओं की भी भूमिका होती है। वे मानते थे कि आर्थिक एवं सामाजिक विचारधाराओं में विभिन्नता के आधार पर देश चलाया जाना चाहिए।

उपाध्याय जी के विचारों से लोग दशकों तक अनभिज्ञ रहे हैं। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके विचारों को उभारा है, जिस पर विवाद हो रहे हैं। इसका कारण यही है कि विरोधी दलों के लोग उनके व्यक्तित्व को राष्ट्रीय न मानते हुए केवल एक विशेष दल के प्रतीक चिन्ह के रूप में देखते हैं। सबसे बड़ी बात यही है, जो ‘पॉलिटिकल डायरी’ की प्रस्तावना में संपूर्णानंद ने लिखी है कि ‘अगर हमें इस देश में प्रजातंत्र की जड़ें जमानी हैं, तो सहिष्णुता के गुण को व्यवहार में लाना होगा।’

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित राकेश सिन्हा के लेख पर आधारित।

 

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