काले धन पर अंकुश के लिए औद्योगिक कानूनों में सुधार की आवश्यकता

Afeias
15 Dec 2016
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mudDate: 15-12-16

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सरकार ने काले धन को कम करने के लिए नोटबंदी अवश्य की है, परंतु औद्योगिक विवाद अधिनियम जैसा शस्त्र सरकार की नजरों से अनदेखा छूटा हुआ है, जो धड़ल्ले से काले धन में बढ़ोत्तरी किए जा रहा है।

  • इस अधिनियम के अनुसार
    • कोई भी उद्योग अगर 100 से कम मजदूर रखता है, तो उन्हें कभी भी काम से हटाने के लिए सरकारी अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी।
    • दूसरे, किसी भी मजदूर को अगर लगातार 240 दिनों से कम काम पर रखा जाता है, तो मालिक को उसे किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति देने की आवश्यकता नहीं है।
    • तीसरे, बोनस अधिनियम के अनुसार 21,000 रुपये से अधिक आय वाले को बोनस देने को कंपनी बाध्य नहीं है।

ये तीनों तरीके किसी व्यवसायी को बहुत आकर्षक लगते हैं। वे इनकी आड़ में अब उद्योग को छोटे रूप में रखना अधिक पसंद करते हैं। 100 से कम मजदूर रखते हैं, और 240 दिन पूरे होने से पहले ही उन्हें बदल देते हैं। इन सबके लिए उन्हें कोई रिकार्ड रखने की जरूरत नहीं होती और वे आराम से काला धन जमा करते जाते हैं।इस अधिनियम से नुकसान मजदूरों का होता है। मजदूरों को अस्थायी रूप से ही काम करना पड़ता है, और उनका पेशा हमेशा असुरक्षा से घिरा रहता हैं। मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए इस अधिनियम में सुधार करके किसी उद्यम के आकार और मजदूरी के कार्य दिवसों की संख्या से परे उन्हें सभी प्रकार के लाभ और बोनस दिया जाना चाहिए।

बहुत से उद्यमी शायद इस बात के लिए तैयार हो जाएं, बशर्ते उन्हें मजदूरों को हटाने के लिए सरकारी अनुमति न लेनी पड़े। अगर मजदूरों की बर्खास्तगी के समय उन्हें पर्याप्त वेतन देने की शर्त पर उद्यमियों की इस बात को मान लिया जाए, तो कोई बीच का रास्ता निकाला जा सकता है। इस तरीके से मजदूरों और उद्यमियों दोनों को ही संतोष रहेगा।

जब तक उद्योग जगत में मौजूदा औद्योगिक विवाद अधिनियम लागू रहेगा, काले धन को बनने और बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। इससे मजदूरों और आम आदमी का ही नुकसान होगा।

टाइम्स  ऑफ  इंडिया में प्रकाशित दीपांकर गुप्ता के लेख पर आधारित।

 

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