औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का नवीनीकरण
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पिछले कुछ वर्षों में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में माह-दर-माह गिरावट दिखाई जा रही है। यह गिरावट उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण में दी गई वास्तविक उत्पादन वृद्धि से मेल नहीं खाती। दरअसल, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का लक्ष्य देश में औद्योगिक उत्पादन का पूर्ण मूल्य न दिखाकर इसकी दिशा और प्रवृत्ति को ऊजागर करना होता है। इसकी सार्थकता इसी में है कि यह
अर्थव्यवस्था के बदलते रुख की ओर पहले से ही आगाह करता रहे। परंतु पिछले कुछ वर्षों में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक ऐसा करने में असफल रहा है। यह लगातार उन वस्तुओं के औद्योगिक उत्पादन का आकलन कर रहा था, जिन्हें 2004-05 के आधार वर्ष में शामिल किया गया था। बदलते समय के साथ सूची में शामिल कुछ वस्तुओं का उत्पादन बंद हुआ और सूचकांक ने उसे शून्य घोषित कर दिया। लेकिन उस वस्तु की जगह जिस नए उत्पाद ने ली, उसे सूचकांक में शामिल नहीं किया गया। यही कारण है कि हमें औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में लगातार गिरावट नजर आती रही। इस समस्या से निपटने के लिए वर्तमान सरकार ने कुछ नए कदम उठाए हैं।
- केन्द्रीय सांख्यिकी विभाग ने आर्थिक आधार वर्ष 2011-12 चुना है। 1937 के बाद से यह नौवां परिशोधन किया गया है। इसका लक्ष्य 2004-05 के बाद से औद्योगिक क्षेत्र में आए परिवर्तनों को समाहित करना है। इस बीच आए नए उत्पादों को सूची में शामिल करके उन उत्पादों को हटा दिया गया है, जिनका कोई अर्थ नहीं था। जैसे कि विद्युत सूची में नवीनीकरणीय ऊर्जा को शामिल कर लिया गया। पिछले 620 वस्तुओं के स्थान पर अब सूची में 809 वस्तुओं को शामिल किया गया है। उम्मीद की जा सकती है कि ऐसा करने से औद्योगिक उत्पादन सूचकांक बेहतर हो सकेगा।
- उत्पादों के आवधिक पुनरावलोकन के स्थान पर स्थायी प्रबंध किए गए हैं, ताकि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक दिखाया जा सके। सूची के निरीक्षण मापन के लिए सतत् कार्यवाही चलती रहेगी। इससे अर्थव्यवस्था में आने वाले परिवर्तनों के अनुसार वस्तुओं, रिर्पोटिंग इकाई और कवरेज की प्रक्रिया पर निगरानी रखी जा सकेगी।
इसके बावजूद विभिन्न इकाईयों से डाटा एकत्रीकरण का काम कठिन है। इस क्षेत्र में उत्पादन की नियमित जानकारी देने के लिए कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है। सांख्यिकी विभाग के लिए यह एक बड़ी चुनौती है।