ओड़ीशा की आपदा

Afeias
17 Jun 2019
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Date:17-06-19

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प्रत्येक संकट का पहले से अनुमान नहीं लगाया जा सकता। समय-समय पर आने वाले विनाश के कुछ प्रसंग जीवन की प्रकृति में अंतर्निहित होते हैं। सन् 1800 से लेकर 2019 तक तूफान फानी के साथ ही लगभग 300 हल्के और विनाशकारी तूफानों ने ओड़ीशा के जन-जीवन को झकझोरा है।

ऐसा कहा जाता है कि हमें यानि मानव-जाति को होने वाली घटनाओं का बोझ नहीं ढोते रहना चाहिए। इतिहास साक्षी है कि बड़े-बड़े आर्थिक और सांस्कृतिक तूफानों में भी मानव जाति ने प्रगति की एक ऊँची छलाँग लगाने में सफलता प्राप्त की है। जैसा कि जौसेफ केनेडी ने कहा है कि, ”चीनी लोग संकट या आपदा जैसे शब्द को लिखने के लिए ब्रश के दो स्ट्रोक का प्रयोग करते हैं। एक निशान खतरे के लिए होता है, तो दूसरा इसे अवसर की तरह भुनाने के लिए।”

वर्ग 5 की श्रेणी में रखे जाने वाले तूफानों से फानी तूफान की तीव्रता कुछ ही कम थी, लेकिन ओड़िया लोगों ने अद्भुत निडरता का परिचय देते हुए इस संकट का सामना किया। इस तूफान की शक्ति 1600 परमाणु बमों के बराबर थी। परन्तु हमारे लोगों के धैर्य और लचीलेपन ने पूरे विश्व के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।

कुछ खास विन्दु

1. आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में सरकारी और स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रयासों ने ओड़ीशा के फानी तूफान के दौरान अपनी सफलता को प्रमाणित कर दिया। वहाँ की जनता और मछुआरों ने सरकार के प्रत्येक निर्देश का अनुपालन किया। यही कारण है कि तूफान की विनाशकारिता की तुलना में बहुत कम जानें गईं।

2.लचीलेपन को संतोष का पर्याय नहीं बनने देना चाहिए। इसके लिए दो तरह से अपनी तैयारी जारी रखनी होगी, (1) राहत और (2) विकास।

विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण, पिछले वर्षों की तुलना में और भी भयंकर तूफान  आ सकते हैं। इसके लिए तुरन्त राहत पहुँचाने के लिए तत्पर रहना होगा। आपदा को झेल सकने वाले बुनियादी ढाँचे का विकास करना होगा।

3.केन्द्र और राज्य सरकारें, आपातकालीन स्थितियों का सामना करने के लिए मिलकर काम कर रही हैं। फानी तूफान के 24 घंटे के अंदर ही पेट्रोलियम की आपूर्ति और भंडारण का काम शुरू कर दिया गया था।

4.आपदा प्रबंधन कार्यक्रम में आजीविका संरक्षण को भी शामिल किया जाना चाहिए।

5.विद्युत क्षेत्र के बुनियादी ढांचों का विकास इस प्रकार किया जाना चाहिए, जो 300 कि.मी. प्रति घंटे की तीव्रता वाले तूफान को सह सकें।

किसानों की आजीविका को हुए नुकसान के प्रति सरकार को तुरन्त संज्ञान लेना चाहिए। राज्य को कृषि मंत्रालय के सहयोग से नारियल, केले आदि के नष्ट हुए बगीचों के बदले उत्तम गुणवत्ता वाले पौधे उपलब्ध कराने के साथ-साथ किसानों को तकनीकी और ऋण प्राप्त करने संबंधी सहायता प्रदान करनी चाहिए।

6.वन्य जीवन को ऐसी आपदाओं से बचाने के लिए कोई नीति तैयार करनी चाहिए, जिससे उन पर कम से कम प्रभाव पड़े।

7. ओड़ीशा जैसे तूफान संभावित क्षेत्र में एक संयुक्त प्रयास के साथ-साथ सामुदायिक अनुबंध को और मजबूत करने की आवश्यकता होती है। अन्यथा राहत और पुनर्वास कार्य एक संवेदनाहीन अथक प्रयास बन जाएगा।

सभ्यता का विकास जन समुदाय पर आधारित रहा है। जब समुदाय को संघटनात्मक प्रयास के साथ सर्वश्रेष्ठ बनने की धुन सवार हो जाती है, तो वह आपदाओं को भी सकारात्मक मोड़ दे देता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित धर्मेन्द्र प्रधान के लेख पर आधारित। 21 मई, 2019

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