ओखी : आपदा-प्रबंधन की खुलती पोल
Date:08-01-18
To Download Click Here.
किसी भी प्रकार की आपदा समाज एवं सभ्यता को तहस-नहस कर देती है। इसके कारण जन-धन की हानि के साथ-साथ पर्यावरण को भी बहुत नुकसान होता है। बाढ़, तूफान, भूकंप, भूस्खलन आदि आपदाएं प्राकृतिक कारणों से आती हैं। जब एक आपदा मृत्यु एवं विनाश की लीला का ताडंव रचती है, तो उसकी संभाल प्रभावित लोगों के वश में नहीं रह जाती। वे असहाय हो जाते हैं। ओखी तूफान के दौरान भी यही हुआ। नवम्बर माह के अंत में इसने तमिलनाडु और कन्याकुमारी के तटों पर भयंकर तबाही मचाई।
तमिलनाडु और केरल के मछुआरों की मानें, तो इस तूफान के चलते 120 से अधिक मछुआरों की मृत्यु हो चुकी है, और 900 से अधिक लापता हैं। ऐसी आपदाओं के समय राज्य सरकारों के आपदा प्रबंधन को तत्पर रहना चाहिए और प्रभावित स्थानों पर तत्काल सहायता पहुँचानी चाहिए। परन्तु ऐसा कोई भी प्रयास नहीं किया गया।
तूफान के दौरान दो आधारभूत स्तरों पर सरकार पूरी तरह से विफल रही। (1) तूफान की चेतावनी बहुत देर से दी गई, तथा (2) तूफान के आने के बाद कार्यों के संचालन एवं प्रबंधन का पूर्ण अभाव रहा।
क्या किया जाना चाहिए था?
- तूफान की चेतावनी जल्द से जल्द दी जानी चाहिए थी, जिससे मछुआरे समुद्र में जाने से बचते।
- तूफान आने के बाद भारतीय तट-रक्षकों को अपने खोजी जहाज एवं हेलीकॉप्टरों के जरिए अभियान चला देना था। लापता हुए अनेक मछुआरों को समय रहते ढूंढा या मरने से बचाया जा सकता था। इस अभियान में कुछ स्थानीय मछुआरों को जोड़ा जाना चाहिए था, जिससे वे सही स्थान का पता बता सकें। ऐसा कुछ भी नहीं किया गया।
- भारतीय नौ सेना को अपने आधुनिकतम जहाजों एवं विमानों के जरिए बचाव अभियान में भाग लेना चाहिए था।
- हमारे 2005 के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, आपदा प्रबंधन की राष्ट्रीय नीति (2009), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (2016) एवं राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल को बनाने का क्या लाभ, जब हम आपदाग्रस्त होने पर उनका उपयोग न कर सकें।
ओखी तूफान के चलते समुद्र किनारे बसे लोगों की केले, रबड़, नारियल एवं अनेक प्रकार की फसलों को नुकसान हुआ है। यही इनकी जीविका का साधन थीं। राहत और पुनर्वास का कार्य अकेले राज्य सरकार के लिए बहुत मुश्किल है। केन्द्र सरकार को भी इसमें सहयोग देना होगा।किसी भी आपदा से निपटने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों के अनेक विभागों को मिलकर प्रयास करने पड़ते हैं। ओखी तूफान के संदर्भ में भी ऐसा ही कहा जा सकता है।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित एम.जी. देव सहायम् के लेख पर आधारित।