आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के माध्यम से सरकार का कायाकल्प

Afeias
23 May 2018
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Date:23-05-18

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आने वाला युग आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (ए आई) का युग होगा। आज कई ऐसे रणनीतिक, औद्योगिक और सामाजिक क्षेत्र हैं; जैसे, सुरक्षा, वित्त, निर्माण, ई-वाणिज्य, आवाज पहचान और परिवहन; जिनमें ए आई का उपयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है।

ए आई के प्रयोग से सरकार को अनेक क्षेत्रों में सूचना एवं दूरसंचार प्रौद्योगिकी को सशक्त करने में मदद मिली है। इससे निश्चित रूप से विकास बढ़ा है, एवं ढांचागत बाधाओं को पार करने में भी मदद मिली है।

  • अगर हम भारत के सभी न्यायालयों के मुकदमों की बात करें, तो ए आई की मदद से हमें यह जानने में सुविधा हो सकती है कि किस कानून के किस भाग के अंतर्गत सबसे ज्यादा मुकदमें आ रहे हैं। ऐसा होने पर सरकार उस कानून में ही सुधार करने के बारे में सोच सकती है। नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड इस दिशा में काम भी कर रहा है।
  • बहुत सी विकास परियोजनाओं पर निगरानी रखने के लिए भी एआई बहुत काम की तकनीक है। राष्ट्रीय सूचना केंद्र ने जीपीएस वाले स्मार्टफोन से स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत शौचालय निर्माण योजना पर निगरानी रखने का काम शुरू कर दिया है। ए आई सॉफ्टवेयर से शौचालय निर्माण की जगह और लाभार्थी की पहचान की जा सकती है। अलग-अलग फोटो में से नकली दावों का पता लगाया जा सकता है। इस प्रकार असली दावेदारों की पहचान करके उन्हें प्रतिपूर्ति दी जा सकती है।
  • ए आई की मदद से सरकार सार्वजनिक बुनियादी ढांचों के रखरखाव का पूर्वानुमान लगा सकती है। आपदा के दौरान की प्रतिक्रिया से लेकर स्वास्थ्य सेवा में सुरक्षात्मक उपायों पर भी काम किया जा सकता है। आर्थिक घोटालों पर नकेल कसी जा सकती है।
  • कृषि क्षेत्र में ए आई की भूमिका काफी बड़ी हो सकती है। हमारे किसानों को अगर मौसम, मृदा, भू-जल, फसल-पैटर्न, किस समय क्या उगाया जाए, कब खाद डाली जाए, सिंचाई की जाए एवं कटाई आदि की जानकारी मिलती रहेगी, तो वे अधिक ऊपज प्राप्त कर सकेंगे।
  • एआई की फेस रेकगनिशन या चेहरा पहचान तकनीक से अपराधियों को आसानी से पकड़ा जा सकेगा।

ए आई से आशंकाएं और चुनौतियां –

एक अनुमान है कि ए आई के कारण रोज़गार के अनेक अवसर खत्म हो जाएंगे। लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है।

उल्टे, यह काम करने की मानवीय क्षमता में कई गुणा संवद्र्धन करेगा। यह अकल्पनाशील एवं दोहराए जाने वाले कामों की जिम्मेदारी लेकर मनुष्य के मस्तिष्क को अधिक सृजनात्मक कार्यों के लिए मुक्त कर सकेगा। इसके विकास के साथ ही ए आई के क्षेत्र में ही रोज़गार के अनेक अवसर मिलेंगे।

दूसरे, सरकार का मानना है कि ए आई का समुचित उपयोग तभी किया जा सकता है, जब इसके लिए सही और पर्याप्त डाटा मिल सके। डाटा सुरक्षा और निजता की रक्षा करते हुए इसे उपलब्ध कराने के बारे में जस्टिस श्रीकृष्णन की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई है।

ए आई के ऐसे एल्गोरिदम विकसित करने होंगे, जो पक्के और मापयोग्य हों।, साथ ही निरीक्षण के लिए पारदर्शी भी हों ताकि इनके दुरूपयोग से बचाया जा सके।ए आई और मानवीय जीवन के अंतर्विभाजक के रूप में एक कानूनी ढांचा भी तैयार करना होगा।

पुणे में सी-डैक, ए आई तकनीक पर लगातार काम कर रहा है। जनवरी 2018 में अनेक उच्च शिक्षा संस्थानों और उद्योगों से जुडे़ विशेषज्ञों ने भारत में ए आई के विकास पर एक कार्यशाला में विचार-विमर्श किया।

ए आई के लिए नीति निर्माण हेतु चार समितियाँ बनाई गई हैं। ये समितियां, भारत के प्रमुख क्षेत्रों में ए आई को राष्ट्रीय मिशन बनाने, तकनीकी क्षमताओं का विकास करने, कौशल विकास, शोध एवं अनुसंधान, साइबर सुरक्षा, ए आई से जुड़े, कानूनी एवं नैतिक मामलों में कार्ययोजना तैयार करेगी। इनकी रिपोर्ट ही भारत में ए आई के विकास और तैनाती को सुनिश्चित करेगी।

“द इकॉनामिक टाइम्स” में प्रकाशित रविशंकर प्रसाद के लेख पर आधारित। लेखक इलैक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री हैं। 4 मई 2018