आयुष्मान भारत के स्वास्थ्य की देखभाल जरूरी है

Afeias
11 Jun 2018
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Date:11-06-18

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सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना, आयुष्मान भारत की शुरूआत की है। इस स्वास्थ्य नीति के दो मुख्य लक्ष्य हैं – (1) जनता के स्वास्थ्य को ठीक करना, और (2) उपचार करवा रहे लोगों को वित्तीय सहायता पहुँचाना।

पहले लक्ष्य की सफलता को मापने के लिए रोगों में कमी एवं लोगों की जीवनावधि में वृद्धि को देखना होगा। दूसरे लक्ष्य के लिए, स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग करने के दौरान जनता पर व्यय के बोझ को कम करना होगा।

योजना के दो मुख्य कारक हैं :

  • डेढ़ लाख स्वास्थ्य उप केन्द्रों का उन्नयन करना। ये केन्द्र लोगों को 12 प्रकार की स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करते हैं।
  • 40 प्रतिशत जनता को प्रति परिवार के हिसाब से प्रतिवर्ष अस्पताल में भर्ती होकर इलाज कराने के लिए 5 लाख रुपये की सुरक्षा प्रदान करना।

स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में कुछ साक्ष्य आधारित रणनीतियों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, जिन पर ध्यान देकर इस क्षेत्र को सुधारा जा सकता है। (1) सार्वजनिक नैदानिक केन्द्र एवं अस्पतालों में सेवा-आपूर्ति की भारी कमी है। इन संसाधनों की पूर्ति के लिए राज्यों में आपसी तालमेल न होने से स्थिति और भी खराब हो गई है। तमिलनाडु में ही चिकित्सा एवं गैर चिकित्साकर्मियों की 30 प्रतिशत कमी है।

स्वास्थ्य बजट में इन सेवाओं की आपूर्ति के लिए कोई प्रयास दिखाई नहीं दे रहे हैं। देश के कई हिस्सों के अस्पतालों या अन्य स्वास्थ्य केन्द्रों में यह कमी दक्षिण भारत की तुलना में अधिक है। परिणामस्वरूप रोगी दक्षिण भारत की ओर रूख करना चाहेंगे।

राज्यों की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के प्रभाव को स्पष्ट समझना और धरातलीय स्तर पर उसका संचालन करना अभी संभव नहीं हो पाया है।

(2) स्वास्थ्य सेवाओं पर लगने वाले शुल्क के निर्धारण का मसला भी अभी अस्पष्ट है। एक ही सेवा के लिए अलग-अलग राज्यों में भारी अंतर से पैसे लिए जा रहे हैं।

राजीव आरोग्यश्री बीमा योजना में पैकेज का मूल्य निर्धारित किया जाता है। यह मूलतः आंध्रप्रदेश की योजना है, जिसे अन्य राज्यों ने भी इसी रूप में अपना लिया है। विडंबना यह है कि इस पैकेज प्रणाली में मूल्यों के हेरफेर को समझना, न ही सरकार और न ही उपभोक्ता की समझ की बात है। मूल्यों के नियमन या मोलभाव के लिए उपभोक्ता को यह समझने की सुविधा होनी चाहिए।

(3) प्राथमिक उपचार की कमी होना भी एक बड़ा मुद्दा है।

तमिलनाडु के एक पायलट प्रोजेक्ट में प्राथमिक उपचार केन्द्रों के उन्नयन से वहाँ मरीजों की संख्या 1 प्रतिशत से बढ़कर 17 प्रतिशत हो गई। उत्तर भारत में तो स्वास्थ्य उपकेन्द्रों और प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों का नितान्त अभाव है।

स्वास्थ्य मानकों के निम्नतम स्तर तक पहुँचने के लिए भी 30,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता है।

संसाधनों की इतनी कमी के साथ यद्यपि स्वास्थ्य लक्ष्यों की पूर्ति करना कठिन है, परन्तु असंभव नहीं। सरकार ने गरीब मरीजों को 5 लाख वाऊचर देने की बात कही है। उसके बारे में यह स्पष्ट नहीं है कि उसे कहाँ और कैसे भुनाया जाएगा। आयुष्मान भारत योजना को एक सुधार एजेंडे के साथ लाने की जरूरत है, जिसमें प्रशासनिक सुधारों और नियमन की उचित व्यवस्था हो।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित के.सुजाता राव के लेख पर आधारित। 28 मई, 2018