आत्मनिर्भर भारत की ओर एक कदम
Date:02-06-20 To Download Click Here.
ऐसा कहा गया है कि आर्थिक विकास के लिए गैर आर्थिक और अभौतिक तत्व ही मुख्य आधार होते हैं। आत्मा ही शरीर का आधार होती है। 12 मई को प्रधानमंत्री द्वारा ‘आत्मनिर्भर भारत‘ के पाँच स्तंभों की घोषणा के दौरान कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ है। ये पाँच स्तंभ हैं , अर्थव्यवस्था बुनियादी ढांचा , तंत्र , जीवंत प्रजातंत्र और मांग।
कोविड-19 के बाद अर्थव्यवस्था को गति देने के इरादे से सरकार ने जो भी पैकेज दिया है , वह मुख्य रूप से कृषि और सूक्ष्म, लघु व मझोले उद्योगों के लिए वरदान सिद्ध होगा। सरकार ने तय किया है कि कृषि उत्पादों के लिए एक एकीकृत बाज़ार का निर्माण किया जाएगा। इसकी आपूर्ति श्रृंखला को सुदृढ बनाने के लिए कृषि के बुनियादी ढांचे में निवेश को बढ़ाया जाएगा।
कृषि में बढ़ी हुई आय से सूक्ष्म , लघु व मझोले उद्योगों को बल मिलेगा। सरकार ने स्थानीय उत्पादों के लिए अपना रूझान बढ़ाने का जो लक्ष्य रखा है , उसके चलते लघु उद्यमों के उत्पादों की खरीद के लिए सरकार भी आगे आएगी। सूक्ष्म , लघु व मझोले उद्यमों के लिए ऋण को आसान बनाया जा रहा है , और ऋण गारंटी योजना से इन उद्यमों के खतरों को कम किया जा रहा है।
कोयला व अन्य खनिजों के खनन , उत्खनन खोज अभियान , नागरिक उड्डयन क्षेत्र , अंतरिक्ष तथा विद्युत वितरण के निजीकरण की योजना से इन क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने की आशा है। सुरक्षा क्षेत्र में हार्डवेयर के स्वदेशीकरण से घरेलू विनिर्माण उद्योगों को पंख लग जाएंगे। अनेक क्षेत्रों में तकनीक आधारित तंत्र को बढ़ावा देने से भी अनेक लाभ मिलने की उम्मीद है। शिक्षा , स्वास्थ्य , प्रशासनिक सुधार , रणनीतिक क्षेत्रों के अलावा सार्वजनिक इकाइयों के निजीकरण आदि में तकनीक की मदद से तेजी से सुधार हो सकेगा।
वित्तीय क्षेत्र में सरकार ने एनबीएफसी गारंटी योजना में बदलाव करते हुए इसके अंतर्गत सीपीएस और बांड जारी करने को वैधता प्रदान की है। इस तरलता से आत्मविश्वास बढ़ेगा। सूक्ष्म , लघु व मझोले उद्यमों के दिवालिया कानून में बदलाव से उन्हें राहत मिलेगी। 2016 के आई बी सी के अंतर्गत ‘डिफॉल्ट‘ की परिभाषा से कोविड.19 में लिए गए कर्ज को मुक्त करना स्वागतयोग्य कदम कहा जा सकता है।
जन-आधारित नीतियों में मनरेगा के लिए 40,000 करोड़ रु. की राशि के आवंटन से प्रवासी मजदूरों को लाभ मिलने की संभावना है।
विचारों की विविधता के संदर्भ में आर्थिक नीतियां हमेशा आकर्षक रही हैं। मांग प्रबंधन नीतियों के प्रस्तोता , 1929 के ग्रेट डिप्रेशन की भविष्यवाणी करने वाले फ्रेडरिक हायेक ने कीनेसियन सिद्धांत के विपरीत , यह माना था कि उछाल के बाद की दुर्घटना से वास्तविक वसूली के लिए स्थायी उत्पादन की वापसी की आवश्यकता होती है।
आत्मनिर्भर भारत के उद्देश्य को अब अपनी खोई विकास दर हासिल करने के लिए 10 साल की अवधि में कम से कम दोहरे अंकों के विकास दर की आवश्यकता होगी , और इस प्रकार के झटकों का सामना करने के लिए अर्थव्यवस्था में लचीलापन रखना होगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया‘ में प्रकाशित सौम्य कांति घोष के लेख पर आधारित। 22 मई 2020