किराना दुकानों की भी कोई सुने

Afeias
01 Jun 2020
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Date:01-06-20

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लॉकडाउन खुलने के साथ ही संचालन और आपूर्ति श्रंखला के स्तिर पर अनेक चुनौतियां सामने आती जा रही हैं। लॉकडाउन के पहले तीन चरणों में फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स या जिसे एफ एम सी जी के नाम से जाना जाता है, विनिर्माण और परिवहन में खासी दिक्कतें आईं हैं। दूसरे खुदरा और थोक विक्रताओं को पूर्ण स्वतंत्रता के साथ संचालन का अधिकार नहीं होने से आई परेशानी, और तीसरे ई-कामर्स वाली कंपनियां आवश्यतक वस्तुओं की भी डिलीवरी नहीं कर पाईं।

हमारे देश के किराना स्टोर परंपरागत रूप से चले आ रहे हैं। वे अपने ग्राहकों की जरूरतों और परेशानियों को बखूबी पहचानते हैं। बहुतों के लिए यह वंशानुगत व्यववसाय है। खाद्यान्न  और अन्य  राशन सामग्री को घरों तक पहुंचाने का काम रातोंरात किया जाने वाला काम नहीं था। इसलिए लॉकडाउन के दौर में आप पड़ोस की किराना दुकानों ने अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभाई है। वहीं, हाल के कुछ वर्षों में पनपी ई.कॉमर्स प्रणाली से लोगों को आशा के अनुरूप सुविधाएं नहीं मिल सकीं।

सच्चाई यह है कि हमारे देश की 90% उपभोक्ता वस्तुओं की पूर्ति किराना दुकानों के माध्यम से ही पूरी होती है। वे न केवल हमारी आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन की रीढ़ हैं, बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था के लिए भी अनिवार्य आधार हैं। देश में लगभग 1.2 करोड़ किराना दुकानें हैं। बड़े-बड़े आधुनिक स्टोर से लेकर छोटे-छोटे गांवों में भी इनका अस्तित्वं है। ये लाखों ग्राहकों की तमाम जरूरतों को पूरा करती रहती हैं। लॉकडाउन की विडंबना यह रही कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात जैसे कई राज्यों ने इनके खुलने और जरूरी वस्तुओं की बिक्री पर रोक लगा दी थी। स्थांनीय मंडियों के बंद होने से ये दुकानें ताजे फल और सब्जियों की आपूर्ति भी नहीं कर पाईं।

आज सरकार ने गैर जरूरती सामानों की भी बिक्री के लिए ई-कामर्स एवं अन्य व्यारवसायिक एजेंसियों को भी छूट दे दी है। फिर भी कई राज्य सरकारें इसे रोक रही हैं। इस प्रकार के गैर जरूरती सामान को किराना दुकानों के माध्यम से भी बिक्री की छूट दी जानी चाहिए , जिससे अर्थव्यवस्था को संभाला जा सके।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित अरविंद मेदीरत्ता के लेख पर आधारित।

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